खुशनसीबी है वक्त की या ,मैं खुशनसीब हूँ
उदय न हूँ मैं सुखनवर,न किसी का रकीब हूँ -
ओढ़ कर चाँदनी की चिट्टी शाल तारों टंके बूटे
गमजदा ने भी कहा मैं उसके कितना करीब हूँ -
नाव की खुशफहमियों पर, जीता है बुलबुला
संग हूँ साहिल का मौजों का कितना अजीज हूँ -
गुस्ताखियों को मुआफ ही नहीं दुआ मांगा
मेरे पास वो दिल है ,क्या हुआ जो गरीब हूँ -
उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5-3-2015 को चर्चा मंच पर हम कहाँ जा रहे हैं { चर्चा - 1908 } पर दिया जाएगा
धन्यवाद
ब्लॉग अच्छा लगा.
होली की शुभकामनायें.
एक टिप्पणी भेजें