सरहद मेरी मीत बन गई
बड़भागी हूँ की सरहद
मेरी मीत मिल गई -
जिसकी तलाश जन्मों से
वो प्रीत मिल गई -
सुर साज़ों की गलियों से
स्वर मानस न भाए
देश प्रेम के अधरों को
शुभ गीत मिल गई -
जीवन वारा वलि वेदी पर
सिर कटा पर झुका नहीं
नश्वर जीवन सफल हुआ
कुल गौरव को जीत मिल गई -
उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-10-2016) के चर्चा मंच "ये माटी के दीप" {चर्चा अंक- 2509} पर भी होगी!
दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार
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