तिनके तिनके जल उठते हैं
सारा जंगल जल जाता है।
नंगे पदचांपों की आहट से
प्रस्तर श्रृंग भी हिल जाता है।
न मिटा सका है ताप अखंड
जन जीवनअविरल जाग्रत है,
एक बिरवे की छांव ही काफी
तपता सूरज भी ढल जाता है।
यदि धन-धार हृदय में संचित है
सम्मान सहित मर जाने की,
क्रूर नियति के गल,गाल बसे
अवरोध द्वार भी खुल जाता है।
उदय वीर सिंह।
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