जब से छोड़ा उनके गीत गले की
खरी खरांस चली गयी।
जब से छोड़ा उनकी लीक
जीवन की लगी फांस चली गयी।
बन समिधा दे आहुति कुंडों में
अनुवंधों की,
भय संशय दुविधा की छाई रात
अमावस ख़ास चली गयी।
कब तक धोते आंसू से मुख,
कब तक प्यास बुझाते,
तोड़े पत्थर के झुरमुट पा मीठे
सोते सरित तालाश चली गयी।
पाखंडों के जेवर से जीवन
कितना भारी था,
मैने छोड़ा दरबारी गर्दभ राग,
वो गीत उदास चली गयी।
उदय वीर सिंह ।
9।8।22
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