सोमवार, 24 अप्रैल 2017

क्यों रोये माटी का पूत -

आँख भरी आंचल खाली है
भरे गोदाम खाली थाली है
अन्न दाता याचक बन रोये
स्वप्न भरे हैं घर खाली है -
कर्जों से उनकी भरी किताबें
बटुआ मुद्रा से खाली है -
अंग -प्रत्यंग है कर्ज भरा .
खुशहाली से जीवन खाली है -
सजे मंदिर मसीत गिरजा गुरुद्वारे
बे-पर्दा किसान आँगन .खाली है -
शिगाफों ,से तन ,दिखता है ..
चिथड़े वसन हैं माँ बेटी के
आनंद मनाता साहूकार
देख लहलहाती अपनी खेती के -
जर जोरू जमीन का सौदा
वो करते हुए सवाली है
क्यों आत्महत्या का पथ चुनता
स्वर राजपथों से खाली है
उदय वीर सिंह

2 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बढ़िया कविता. बहुत सुन्दर।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-04-2017) को

"जाने कहाँ गये वो दिन" (चर्चा अंक-2623)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'