मंगलवार, 14 नवंबर 2023

सत्य को सत्य कहा हूँ मैँ...







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सत्ता और सिंहासन के वृत

पथ  से   दूर   रहा  हूँ  मैं।

अभय रहा निशिवासर मन

सत्य  को  सत्य कहा हूँ मैं।

षडयंत्रों, घातों  की  विधि 

विजय कदाचित मिल जाती,

प्रवाह पाप की विष धारा के

सदा  प्रतिकूल  बहा  हूँ  मै।

किंचित दुख  न व्याप  सका 

कभी हार -जीत  के होने पर

चलने  की अटल प्रत्याशा में 

भू कितनी  बार  गिरा  हूँ  मैं।

अवसर न मिला रोने हंसने का

निज राह  कहे  चलते  रहना,

बिसर  गया अपना उर  वेदन

घावों को कितनी बार सिला हूँ मैं।

उदय वीर सिंह।

13।11।23

1 टिप्पणी:

Unnayan Kaur ने कहा…

अति उत्तम !