माना कि धरातल ये समतल नहीं है ,
सागर भी है , सिर्फ मरुस्थल नहीं है,
समानांतर रेखाएं , माना न मिलतीं ,
दिशा और दूरी में विचलन नहीं है
कहीं शाम ढलती कहीं पर सवेरा ,
प्रभाकर कहीं , चाँद डाले है डेरा
कहीं नींद में पुष्प, कहीं मुस्कराए ,
कहीं नीड़ में खग , कहीं नभ को घेरा
रेत में भी बही है , गंगा कि धारा,
तपस्या भगीरथ की निष्फल नहीं है-शीत मेघों के घर, दामिनी भी बसे ,
पाषाणों के अंतस, है शीतल सी धारा-
पादप कंटीले , केवल कांटे न देते ,
मीठे फलों , पात , फूलों को वारा -
आँखों में , सागर में, सावन में पानी ,
अर्थ पानी का केवल,गंगा-जल नहीं है-
कर्णप्रिय सुर मधुर. मृत बांसों से स्वर ले,
वाद्य -यंत्रों ने . स्वर की भाषा लिखी है -विष भी है , औषधि का संचार साधन
मरने वालों ने, अमरता की गाथा लिखी है-
माना की जीवन मुकम्मल नहीं है
फिर भी निराशा का स्थल नहीं है-
उदय वीर सिंह
16-05-2012
11 टिप्पणियां:
फिर भी जीवन में कुछ तो है...
वाह !!!!! क्या बात कही,...
माना की जीवन मुकम्मल नहीं है
फिर भी निराशा का स्थल नहीं है-
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
इस गीत मेम एक संगीत है। इस संगीत की धुन, लय ताल मन को हरते हैं।
माना की जीवन मुकम्मल नहीं है
फिर भी निराशा का स्थल नहीं है-
वाह ... अनुपम भाव संयोजित करती हैं यह पंक्तियां ... आभार उत्कृष्ट लेखन के लिए ।
बहुत बढ़िया...!
बहुत ही खुबसूरत भावो की सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
आशावादिता के उन्नत भावों से सुसज्जित बेहतरीन कविता ....बधाई
Bahut Sundar Kavita .... Bahut kuchh hai jeevann mein.
कर्णप्रिय सुर मधुर. मृत बांसों से स्वर ले,
वाद्य -यंत्रों ने . स्वर की भाषा लिखी है -
विष भी है , औषधि का संचार साधन
मरने वालों ने, अमरता की गाथा लिखी है...
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