जलें दीप , उत्सव मनाएं बार ,
अब तो दुआओं में, कसीना है ,
थे दुश्मन के , इंतजामात कभी
अब खुशहाली का नगीना हैं -
गुल खिल रहे, जो बोये न गए ,
हैरानी है, आया पेशानी पे पसीना है -
खून - ए- आवाम , बोतल में बंद है ,
हर शाम गुलाबी , हर जाम नमूना है -
कुर्बान की जवानी वो जज्जबात दोनों
मदहोशों के हाथ में, मदीना है
खेलते थे गैर , तमाशाई थे हम ,
अब बार अपना है ,अपनी कसीना है
कैसे भूल जाएँ, ये देश अपना था ,
देशी अंगरेजों ने देश छिना है -
खुद्दारों की शहादत जमींदोज सी है,
जाती दिखे दूर आजादी की सफीना है -
उदय वीर सिंह
20.07.2012
11 टिप्पणियां:
गुल खिल रहे, जो बोये न गए ,
हैरानी है, आया पेशानी पे पसीना है
गजब..
खुबसूरत प्रस्तुति ।
बधाई सरदार जी ।।
खून - ए- आवाम , बोतल में बंद है ,
हर शाम गुलाबी , हर जाम नमूना है -
बहुत खूब
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (21-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
खुद्दारों की शहादत जमींदोज सी है,
जाती दिखे दूर आजादी की सफीना है -
....लाज़वाब अभिव्यक्ति...
हर शाम गुलाबी, हर जाम नमूना है
देशी और अंगरेजों ने,देश को है छिना,,,,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
बहुत सुन्दर रचना ...
सादर
अनु
खुद्दारों की शहादत जमींदोज सी है,
जाती दिखे दूर आजादी की सफीना है -
बहुत खूब ...
खुद्दारों की शहादत जमींदोज सी है,
जाती दिखे दूर आजादी की सफीना है -
बेहतरीन !
खेलते थे गैर , तमाशाई थे हम ,
अब बार अपना है ,अपनी कसीना है
बहुत सुंदर ..
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