मधु ,मकरंद निश्छल सरिता
मद अभिशप्त हुआ करता
धोती सरिता अपशिष्ट मैल
मद ,जीवन कांति क्षरा करता -
कुछ पल भ्रम, व्यतिक्रम के
जीवन आचार नहीं होते
जब स्नेह पयोधि हृदय में होवे
कई जन्म यहाँ जीया करता-
आशा अवलम्बित जीवन है
नैराश्य पतन को भाता है
पुरुषार्थ विजय का सखा मीत
परमार्थ संकल्प लिया करता-
भर गागर प्रेम ही पावन है
प्यास युगों की मिटती है
प्रेम की डोर सखी घट बांधे
जल - कूप में जा डूबा करता-
- उदय वीर सिंह
8 टिप्पणियां:
सुन्दर छान्दसिक कविता |
पुरुषार्थ विजय का सखा मीत..
अति सुन्दर कथ्य।
इस गहन रचना के लिए सादर बधाई।
बहुत सुन्दर कविता.....
सादर
अनु
बहुत ही सुन्दर सार्थक छान्दसिक कविता का सृजन.
बहुत सुन्दर भाव !
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर
भावपूर्ण रचना |
"आशा अविलम्ब जीवित है -----परमार्थ संकल्प लिया करता "
आशा
डोर पतली, बँाधती जीवन रुपहला।
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