जब रोशनी दिखी, तो आफ़ताब कह लिया ,
न हो सका जो अपना,उसको ख्वाब कह लिया-
*
सुरमा लगाऊं आँख में कोशिश मेरी हुयी ,
लग गया कपोल में , तो दाग कह लिया-
*
मंजर था मेरे सामने , गुनाह जब हुआ ,
मुकर गए गवाह , तो बेदाग कह दिया-
*
रफ्ता - रफ्ता जिंदगी , सवाल हो गयी ,
काँटों को ही हमने गुल, गुलाब कह लिया-
*
इंसानियत भी खो गयी , इन्सान की तरह,
पत्थरों के बुत को , लाजवाब कह लिया-
*
तफसील से , गुरबत मेरी तकसीम हो गयी ,
जो रकीब भी मिला कभी ,आदाब कह लिया-
*
पर्दा हया को न मिला , बे - पर्दा जब हुए,
ओढ़ अंधेरों का दामन , नकाब कह लिया-
*
उदय वीर सिंह
03-05-2012.
17 टिप्पणियां:
जब रोशनी दिखी, तो आफ़ताब कह लिया ,
न हो सका जो अपना,उसको ख्वाब कह लिया.....bahut achchi lagi.
इंसानियत भी खो गयी,इन्सान की तरह,
पत्थरों के बुत को , लाजवाब कह लिया-
क्या बात है // बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति //
MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
सुरमा लगाऊं आँख में कोशिश मेरी हुयी ,
लग गया कपोल में , तो दाग कह लिया-
*
मंजर था मेरे सामने , गुनाह जब हुआ ,
मुकर गए गवाह , तो बेदाग कह दिया-
भाई साहब बड़ी प्यारी ग़ज़ल है। मैं तो दो बार गा चुका हूं... हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया की धुन पर। शेर के अर्थ भी बड़े गंभीर हैं।
सुरमा लगाऊं आँख में कोशिश मेरी हुयी ,
लग गया कपोल में , तो दाग कह लिया-
*
मंजर था मेरे सामने , गुनाह जब हुआ ,
मुकर गए गवाह , तो बेदाग कह दिया-
भाई साहब बड़ी प्यारी ग़ज़ल है। मैं तो दो बार गा चुका हूं... हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया की धुन पर। शेर के अर्थ भी बड़े गंभीर हैं।
कल 05/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
वाह..............
बेहतरीन गज़ल...........
रफ्ता - रफ्ता जिंदगी , सवाल हो गयी ,
काँटों को ही हमने गुल, गुलाब कह लिया
बहुत खूब.-
सादर.
वाह क्या बात है, दिल को छू गयी ग़ज़ल आपकी.
जब रोशनी दिखी, तो आफ़ताब कह लिया ,
न हो सका जो अपना,उसको ख्वाब कह लिया-
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई
आँखों का सूरमा अँधेरे में गालों में लगकर दाग ही बन जाता है।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
चर्चा मंच सजा दिया, देख लीजिए आप।
टिप्पणियों से किसी को, देना मत सन्ताप।।
मित्रभाव से सभी को, देना सही सुझाव।
उद्गारों के साथ में, अंकित करना भाव।।
इंसानियत भी खो गयी , इन्सान की तरह
पत्थरों के बुत को ,लाजवाब कह लिया-*
ਇੱਕ ਸ਼ੇਅਰ 'ਚ ਹੀ ਸਾਰੀ ਗਜ਼ਲ ਦਾ ਨੋਚੋੜ ਆ ਗਿਆ।
ਲਾਜਵਾਬ !
ਬਹੁਤ ਵਧਾਈ ।
सुरमा लगाऊं आँख में कोशिश मेरी हुयी ,
लग गया कपोल में,तो दाग कह लिया
यह तो कमाल हो गया जी.
नजर न लग जाए आपकी इस
शानदार अभिव्यक्ति को,
एक काजल का टीका लगाना तो बनता है उदय जी.
यशोदा जी की हलचल में देखा,
यहाँ आकर तो निशब्द हो गया हूँ.
बहुत खूब सर!
सादर
behatarin ,bahut sunder
बहूत खूब|||||
बहूत बढीया गजल है....
बेहतरीन प्रस्तुती....
बहुत खूब!
गज़ल का हर एक शेर लाजवाब,
सुरमा लगाऊं आँख में कोशिश मेरी हुयी ,
लग गया कपोल में , तो दाग कह लिया-
इस मासूम से शेर के लिये खास तौर पर दाद कबूल करें
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