गिरे -बिखरे पत्थरों को समेट,
गंतव्य को राह देनी है -
अँधेरा कहीं तिरोहित हो चले ,
हर हाथों में मशाल देनी है -
न टूट सके आघातों से ह्रदय ,
पत्थरों की दिवार देनी है-
भंवर सामने है,डूबने से पहले ,
नाव को पतवार देनी है-
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हम उजड़ने नहीं देंगे गुलशन ,
गुलों को एतबार देंगे,
अगर खून से रंग निखरता है ,
तो दानवीरों की कतार देनी है-
कही मसला न जाये उत्सवों में ,
कदमों को ख़बरदार देनी है-
बागवान कोई मायूस न हो,
खुरपे के साथ ,तलवार देनी है -
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यूँ अफ़सोस कर लेने से मुकाम ,
कभी हासिल नहीं होते ,
हौसले बसते हर दिलों में हैं ,
महज एक आवाज देनी है-
सोते प्रतीक्षा में हैं दरिया बननेको,
कर चोट गैंतियों की , धार देनी है-
तुम निभाओ ,कुछ हम निभाएंगे,
थमे हुए पहियों को रफ्तार,देनी है-
उदय वीर सिंह
6 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूब वाह!
आपकी नज़रे-इनायत इसपर भी हो-
रात का सूनापन अपना था
bahut hi sahi soch ke sath likhi gayi sunder rachna.
तुम निभाओ ,कुछ हम निभाएंगे,
थमे हुए पहियों को रफ्तार,देनी है-
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,,मित्र उदयवीर जी,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
कितना कुछ करना बाकी है,
मन से अब लड़ना बाकी है।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
यूँ अफ़सोस कर लेने से मुकाम ,
कभी हासिल नहीं होते ,
हौसले बसते हर दिलों में हैं ,
महज एक आवाज देनी है-
सोते प्रतीक्षा में हैं दरिया बननेको,
कर चोट गैंतियों की , धार देनी है-
तुम निभाओ ,कुछ हम निभाएंगे,
थमे हुए पहियों को रफ्तार,देनी है-
जोश और प्रेरणा से भरपूर हौंसलाअफजाई करती प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार,उदय भाई.
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