कोशिश हो रही है --
लोहे के चने चबाने की
मनुष्य को ईश्वर बनाने की ,
नीर को ज्वाला बनाने की ,
पहाड़ समतल बनाने की-
कोशिश हो रही है -
वतन को अपना बनाने की ,
रिश्तों को समझ पाने की ,
इबारत नए ज़माने की
संवेदना भूल जाने की-
कोशिश हो रही है -
दही से , दूध पाने की ,
हाथ में दही ज़माने की ,
बे- जमीन पौध उगाने की
जमीन पर चाँद, लाने की-
कोशिश हो रही है -
विज्ञान का दौर है
इंसानियत भूल जाने की
दौर -ए-इश्क का आलम
शराफत नये जमाने की,
कोशिश हो रही है -
प्रदूषित हो गयी है फिजा,
निजात पाने की,
धरातल शर्म से झुलसा
अनवरत निखार लाने की-
कोशिश हो रही है-
कहने में जाता क्या है
एक बृक्ष हवा में लगायें ,
खाली पेट भी जिन्दा हैं
पेड़ में पैसे उगाने की,
कोशिश हो रही है-
-उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
बस गया है खून में फरेब
पेड़ में पैसे उगाने की
कोशिश हो रही है-
....बहुत खूब! आज की व्यवस्था पर सटीक चोट..
सच में यही कोशिश हो..
भाई उदयवीर जी सत श्री अकाल |बहुत ही सुन्दर रचना और दशहरा के लिए मुबारकबाद |
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना है । कोशिश हो रही है असंभव को संभव बनाने की इंन्सानी मूल्य बदलने की ।
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