सहर हुई तो क्या हुआ-
मंजिलों की बात है
न मिली तो क्या हुआ -
दर मंसूख कभी मंजूर
रियाया वक्त के हम हैं
चल रहे थे साथ ले दम
ठहर गए तो क्या हुआ -
हमने तूफान की गर्दिशी
भंवर की रफ्तगी देखी
अभी भी साथ किश्ती है
साहिल नहीं तो क्या हुआ -
गीत शायर की चाहत है
शायर गीत का आलिम
पढता हर गली कूंचा
महफ़िल नहीं तो क्या हुआ -
उदय वीर सिंह .
1 टिप्पणी:
वाह, बहुत खूब।
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