गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

मंजिलों की बात है...

तीरगी से खौफ क्या
सहर हुई तो क्या हुआ-
मंजिलों की बात है
न मिली तो क्या हुआ -

दर मंसूख कभी मंजूर
रियाया वक्त के हम हैं


चल रहे थे साथ ले दम
ठहर गए तो क्या हुआ -

हमने तूफान की गर्दिशी
भंवर की रफ्तगी देखी
अभी भी साथ किश्ती है
साहिल नहीं तो क्या हुआ -

गीत शायर की चाहत है
शायर गीत का आलिम
पढता  हर  गली कूंचा
महफ़िल नहीं तो क्या हुआ -


                        उदय वीर सिंह .