बुधवार, 30 अप्रैल 2014

- उधार कंगन- { लघु कथा }


- उधार कंगन- { लघु कथा } 

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अरे बाबा किधर को जा रहे हो ? कड़कती आवाज में बंदूक - धारी जवान जो सभा स्थल पर तैनात था पूछा |
नेता जी से मिलूंगा कांपती बेदम आवाज में अपनी छड़ी संभालते हुए बुजुर्ग ने उत्तर दिया |
आज्ञा पत्र है तुम्हारे पास ? सिपाही ने पूछा
नहीं पर मैं मिलूंगा | जिद करते हुए चिलचिलाती धुप में आये माथे के पसीने को पोंछते हुए बुजुर्ग ने कहा |
उसे धक्का दे बाहर करते देख नेता जी ने इशारे से उसे आने का आदेश दिया |
कई लोग उसे नेता जी मिलाने के लिए आगे बढे ,और बुजुर्ग को, नेता जी के पास मंच पर ले गए
चाचा जी ! हरी चाचा ! नमस्कार नेता जी ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया |
बुजुर्ग ने झुक कर दोनों हाथ जोड़े |
हिलते हाथों अपनी थैली से दो सोने के कंगन निकाल देते हुए बोला |
बाबू साब ! पिछली बार की देनी में कुछ कम रह गया था , हम वोट भी आप को ही दिए थे ,हमारे राजू को नौकरी न मिली ,आज बेटी का कंगन उधार लाए हैं पूरा करने को ,हम तन- मन- धन से आप के हैं जी ,आप की नजर हो जाये | दोनों हाथ जोड़ ऊपर उठाते हुए कहा |
मंच पर उपस्थित तीन चार सभ्यजन नारे लगाने लगे
नेता जी जिंदाबाद !नेता जी जिंदाबाद ! बुजुर्ग की आवाज नारों में गुम हो गयी |
रहस्यमयी होठों पर हंसी लिए नेता जी आगे आये और बोले-
मुझे अब कोई हरा नहीं सकता ,मेरे साथ जब ऐसे दानवीर ,कर्मवीर, शूरवीर हैं कोई पैदा नहीं जो मुझे शिकस्त दे | इस वीर सपूत का हम अभिनंदन करते हैं ,इनकी छोटी सी भेंट हमारे जैसे प्यासे के लिए, देश के लिए अमृत की बूंद जैसी है | ऐसे भामाशाहों से ही देश जिन्दा है , इन्हें कोटि कोटि प्रणाम इनके त्याग भाव- भक्ति के लिए | ये प्रेरणा स्रोत हैं उदहारण हैं समाज के लिए |
जयकारे गूंजे ,नेता जी की जय | थोड़ी देर बाद भीड़ व सभा विसर्जित हो गयी ,बुजुर्ग राजू के साथ आवाक अकेला पगडंडियों पर लड़खड़ाते अग्रसर था |
बापू अब तो नौकरी पक्की समझे ? राजू ने पूछा
राजू क्या पता ! पिछली दफा तो उसके घर में दिया रूपया कम था ,पर इस बार तो अपने को नेता जी सुभाष घोषित कर लिया |
अब उम्मीद क्या रखनी, चल एक बीघा जमीन बेच, माधुरी का उधार कंगन लौटाना भी है |

- उदय वीर सिंह

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