जींद हँसती है, रहो किसी का होकर
खुशी मिलती है किसीको खुशी देकर
देख लेना कभी ,किसी का गम लेकर -
देख लेना कभी ,किसी का गम लेकर -
पैरहन क्या है , न देख निगाहें बदलो
बीज जमता है ,जमीं में दफन होकर -
माना मलमली दुपट्टों की, उड़ान ऊंची
जो निभाना तो,किसी का कफन होकर -
कांटे भी पनाह में हैं,गुल भी पनाह में
कितना सबाब है जीना गुलशन होकर-
कितना सबाब है जीना गुलशन होकर-
क्यों गर्दिशी का आलम अलविदा कहो
बनो चिराग तो उलफत से रौशन होकर -
बनो चिराग तो उलफत से रौशन होकर -
उदय वीर
9 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना शनिवार 01 नवम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (01-11-2014) को "!! शत्-शत् नमन !!" (चर्चा मंच-1784) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (01-11-2014) को "!! शत्-शत् नमन !!" (चर्चा मंच-1784) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
क्यों गर्दिशी का आलम अलविदा कहो
बनो चिराग तो उलफत से रौशन होकर -
..बहुत खूब!
सुंदर ग़ज़ल
UMDA
Bahut umdaaa... Kabhi waqt mile to dastak dijiye hamare 'ahsaaso ki lahro par' yaani hamare blog par hame accha lagega !!
बेहतरीन , बेहतरीन सर धन्यवाद !
Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 3 . 11 . 2014 दिन सोमवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
बहुत ही उम्दा भावपूर्ण ग़ज़ल ...
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