शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

रहो किसी का होकर


जींद हँसती है, रहो किसी का होकर

खुशी मिलती है किसीको खुशी देकर
देख लेना कभी ,किसी का गम लेकर -

पैरहन क्या है , न देख निगाहें बदलो 
बीज जमता है ,जमीं में दफन होकर -




माना मलमली दुपट्टों की, उड़ान ऊंची 

जो निभाना तो,किसी का कफन होकर -

कांटे भी पनाह में हैं,गुल भी पनाह में
कितना सबाब है जीना गुलशन होकर-

क्यों गर्दिशी का आलम अलविदा कहो
बनो चिराग तो उलफत से रौशन होकर -

उदय वीर 

9 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना शनिवार 01 नवम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (01-11-2014) को "!! शत्-शत् नमन !!" (चर्चा मंच-1784) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (01-11-2014) को "!! शत्-शत् नमन !!" (चर्चा मंच-1784) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत ने कहा…

क्यों गर्दिशी का आलम अलविदा कहो
बनो चिराग तो उलफत से रौशन होकर -
..बहुत खूब!

Onkar ने कहा…

सुंदर ग़ज़ल

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

UMDA

Unknown ने कहा…

Bahut umdaaa... Kabhi waqt mile to dastak dijiye hamare 'ahsaaso ki lahro par' yaani hamare blog par hame accha lagega !!

आशीष अवस्थी ने कहा…

बेहतरीन , बेहतरीन सर धन्यवाद !
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आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 3 . 11 . 2014 दिन सोमवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ही उम्दा भावपूर्ण ग़ज़ल ...