खिलकर कीचड़ में हमने आसन बनते
ऐश्वर्य का , कमल देखा है -
ऐश्वर्य का , कमल देखा है -
अनुत्तरित है रोटी का प्रश्न , लहलहाती
हुयी , अफीम की फसल देखा है -
हुयी , अफीम की फसल देखा है -
कर्मयोगी की नंगी ,नुमायिस बनी लाश
कुत्तों को रेशमी कफ़न देखा है -
खुद्दारी व ईमानदारी के पैरोकारों की
मौत पर , हंसती हुयी नसल देखा है -
न मिलने का हलफ लेते हैं, खून और खंजरउदय सरेआम उनका वसल देखा है-
मांगता रहा सिजदे में ,फकत दो वक्त की
रोटी ,क्या मिला दामन में ,फजल देखा है-
उदय वीर सिंह
कुत्तों को रेशमी कफ़न देखा है -
खुद्दारी व ईमानदारी के पैरोकारों की
मौत पर , हंसती हुयी नसल देखा है -
किसने कहा की शाम होती है सवेरा भी
दर्द की आँखों में, सदा अँधेरा देखा है -
दर्द की आँखों में, सदा अँधेरा देखा है -
तासीर देख इन्सान की इंसानियत गवारा
नहीं, इन्सान बेघर,बुत को महल देखा है -
नहीं, इन्सान बेघर,बुत को महल देखा है -
न मिलने का हलफ लेते हैं, खून और खंजर
मांगता रहा सिजदे में ,फकत दो वक्त की
रोटी ,क्या मिला दामन में ,फजल देखा है-
उदय वीर सिंह
14 टिप्पणियां:
यह देश विशेष है,
न जाने क्या क्या देखना शेष है।
इस देश को विशिष्ट बनाने वाले हमीं -आप हैं ....कितना विशिष्ट बनेगा अभी ...भविष्य के गर्त में है परंतु जो आज इबारत वर्क पर लिखी जा रही है ,किताब के अंजाम का अहसास होता है .......
किसने कहा की शाम होती है सवेरा भी
दर्द की आँखों में, सदा अँधेरा देखा है -
तासीर देख इन्सान की इंसानियत गवारा
नहीं, इन्सान बेघर,बुत को महल देखा है
वाह ,,,, बहुत सुंदर अच्छी प्रस्तुति
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
खुद्दारी व ईमानदारी के पैरोकारों की
मौत पर , हंसती हुयी नसल देखा है -
सटीक और सार्थक रचना ... न जाने क्या क्या देखना बाकी है ...
क्या बात है!!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 21-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-886 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
कवि की व्यथा स्पष्ट है - सामाजिक विरोधाभास की अति हो रही है।
आभार |
बढ़िया प्रस्तुति ||
बहुत अच्छी प्रस्तुति ......
अनुत्तरित है रोटी का प्रश्न , लहलहाती
हुयी , अफीम की फसल देखा है -हर अश- आर अर्थ गर्भित कटाक्ष लिए देखा है इस ग़ज़ल का ,
हमने वाकई आज फिर हुनर देखा है .
बढ़िया ग़ज़ल .बधाई स्वीकार करें .
खुद्दारी व ईमानदारी के पैरोकारों की
मौत पर , हंसती हुयी नसल देखा है .....बहुत सुन्दर सार्थक और सटीक रचना -
तासीर देख इन्सान की इंसानियत गवारा
नहीं, इन्सान बेघर,बुत को महल देखा है
न मिलने का हलफ लेते हैं, खून और खंजर
उदय सरेआम उनका वसल देखा है
शानदार.....बेहतरीन ग़ज़ल ....
कर्मयोगी की नंगी ,नुमायिस बनी लाश
कुत्तों को रेशमी कफ़न देखा है -
यह हमारे समाज की हक़ीक़त ह। विडम्बना।
किसने कहा की शाम होती है सवेरा भी
दर्द की आँखों में, सदा अँधेरा देखा है
बड़ी प्यारी रचना है भाई जी ...
आभार !
कितने गहन अर्थ छुपे है इन चंद अशआरों में...
बहुत सुंदर...
सादर.
एक टिप्पणी भेजें