रस्म बन कर रह गयी है
रस्म अदायिगी कर रहे हैं -
जल रहा हर शख्स अन्दर ,
दीये ही बाहर जल रहे हैं-
चूल्हे पर बटलोई खाली है ,
वादे और ख्वाब पक रहे हैं-
बिक गयी शाख भी फूलों के साथ
सुना है ,जड़ों के सौदे हो रहे हैं -
मुमकिन है दर्द में फिसल जाना,
बे- दर्द , नशे में फिसल रहे हैं-
बंजर जमीन ,विरानगी की फसल
बेखयाली में मशहूर हो रहे हैं -
जलना था जिन्हें वो बुझ रहे हैं,
सरोकार जिंदगी के जल रहे हैं-
- उदय वीर सिंह
11 टिप्पणियां:
चूल्हे पर बटलोई खाली है ,
वादे और ख्वाब पक रहे हैं-
बहुत खूब .... सुंदर प्रस्तुति
बढ़िया प्रस्तुती ||
आभार भाई जी ||
वाह ...क्या कहने बहुत उम्दा गजल.
साँझा करने का आभार.
आज 17- 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
.... आज की वार्ता में ..नमक इश्क़ का , एक पल कुन्दन कर देना ...ब्लॉग 4 वार्ता ...संगीता स्वरूप.
"सरोकार जिन्दगी के जल रहे हैं" .....क्या बात है
खूबसूरत रचना .....बधाई !
बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति...
जलना था जिन्हें वो बुझ रहे हैं,
सरोकार जिंदगी के जल रहे हैं-
बेहतरीन अभिव्यक्ति |
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
बहुत सुन्दर प्रविष्टि वाह!
इसे भी अवश्य देखें!
चर्चामंच पर एक पोस्ट का लिंक देने से कुछ फ़िरकापरस्तों नें समस्त चर्चाकारों के ऊपर मूढमति और न जाने क्या क्या होने का आरोप लगाकर वह लिंक हटवा दिया तथा अतिनिम्न कोटि की टिप्पणियों से नवाज़ा आदरणीय ग़ाफ़िल जी को हम उस आलेख का लिंक तथा उन तथाकथित हिन्दूवादियों की टिप्पणयों यहां पोस्ट कर रहे हैं आप सभी से अपेक्षा है कि उस लिंक को भी पढ़ें जिस पर इन्होंने विवाद पैदा किया और इनकी प्रतिक्रियायें भी पढ़ें फिर अपनी ईमानदार प्रतिक्रिया दें कि कौन क्या है? सादर -रविकर
राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है
जल कर पथ को प्रकाश दे सकें..जीना सार्थक हो जाये।
जलना था जिन्हें वो बुझ रहे हैं,
सरोकार जिंदगी के जल रहे हैं-
बेहतरीन पंक्तियाँ लगी..
आभार भाई जी !
जलना था जिन्हें वो बुझ रहे हैं,
सरोकार जिंदगी के जल रहे हैं-
bahut khoob...
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