ऊँचे स्वर, पत्थर से लगते ,
फिर भी देने पड़ते है
फूलों की रखवाली हित
कांटे भी लगाने पड़ते हैं -
रस्ते के देवालय को
निहितार्थ हटाने पड़ते हैं
तन आरोग्य, की बाधा में
कुछ अंग कटाने पड़ते हैं -
आये शरण की आश लिये
सब घाव भुलाने पड़ते हैं ,
आदर्श,शील ,ध्वजवाहक को
शीश झुकाने पड़ते हैं -
संबंधों को श्रेय मिले
सम्बन्ध मिटाने पड़ते हैं
अपने जब मैले हो जाएँ
दाग मिटाने पड़ते हैं -
बिंध जाये जब धरा धरातल
अंतस मानस सुन्दर मन ,
विष-बाण विनाश के स्रोत बने
वो शब्द हटाने पड़ते हैं -
मर्यादा का भाव तिरोहित
रुधिर हृदय का कलुषित हो ,
जीवन को अवसान परोसे,
वो तत्त्व हटाने पड़ते हैं
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
यथार्थ -
बढ़िया प्रस्तुती |
अवांछित को रोकने के लिये उपाय तो करने ही होंगे..
बहुत ही बेहतरीन रचना...
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