जब चलने का संकल्प न हो -
विस्थापित कर दो भाषा को
विस्थापित कर दो भाषा को
शब्दों का जब अर्थ न हो-
*
प्रणय भाव का अवगाहन
प्रमुदित उर संचय करता ,
लालित्यश्रृंगार,सौम्य संवेदन
भर नेह नयन अर्पित करता -
अभिलाषा पुष्पित हो मन की
परिमल प्रसून की व्यर्थ न हो-
*
वंचित करता हो स्नेह, सृजन
मंगल , अभिष्ट सम भावों से
उस पथ को तज, अवरुद्ध करो
वो दंश न दे फिर पांवों को-
निष्ठा अर्पण प्रेम की गलियां
घन बरसे तो अल्प न हो -
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वाणी में मधुरिम अमिय प्रवाह
जब भेद रहा हो अंतर्मन
विषपान का कारण सृजित करे
निर्भय विद्रोह का करो वरण-
मिटना तो अंतिम रचना है
जीवन का जब विकल्प न हो-
शूल प्रलाप कर रहा मंच
दंश फूलों को देने वाला
मत आह करो सह लो पीड़ा
कह रहा वाचाल ठगने वाला -
हों अदृश्य कामी वंचक जन
पृथ्वी पर इनका कल्प न हो -
शूल प्रलाप कर रहा मंच
दंश फूलों को देने वाला
मत आह करो सह लो पीड़ा
कह रहा वाचाल ठगने वाला -
हों अदृश्य कामी वंचक जन
पृथ्वी पर इनका कल्प न हो -
-उदय वीर सिंह
5 टिप्पणियां:
यदि आदर्श का आवरण कर्मशीलता को बाधित करता हो तो वह भी त्याज्य है।
बढ़िया भाव |
शुभकामनायें ||
बढ़िया भाव |
शुभकामनायें ||
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♥ लोहड़ी की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक मंगलकामनाएं ! ♥
साथ ही
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति,,,
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं,,,,
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