मंथर -मंथर .....
मंथर -मंथर नेह प्रिया, पग
वन सुंदरवन की ओट चला
पुण्य प्रसून किसने न दिए
शूल -प्रबोध से कौन छला-
तज्य प्रमाद आमोद भरे उर
कली किसलय सजी अचला
अभिनंदन है आमंत्रण है मधु
सृजने को ,किसने न कहा -
कली किसलय सजी अचला
अभिनंदन है आमंत्रण है मधु
सृजने को ,किसने न कहा -
संकुल , सौम्य , सुनेह , लली
कमनीय कन्त, की प्रेम कला
तरु छूअन से, हतभाग्य, नसा
कटु वीथीन को सौभाग्य मिला -
कमनीय कन्त, की प्रेम कला
तरु छूअन से, हतभाग्य, नसा
कटु वीथीन को सौभाग्य मिला -
उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-11-2014) को "नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795 पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut khubsurat rachna !
प्रेम !
तुझे मना लूँ प्यार से !
Bahut sundar prastuti
वाह।
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