मन के भाव , अंतर की पीड़ा , आज तुम्हें कहना होगा ,
मंचित हो हर कथा , व्यथा , नैपथ्य , तुझे उठना होगा ------
मत कह , सब अपने मन की , तुमको भी सुनना होगा ,
जीवन -पथ केवल मुस्कान नहीं , कुछ कांटे भी चुनना होगा /
रीत वल्लरी , प्रीत बनी कब ? जब चली अम्बर की गहराई ,
बिना नीर जीवन कब संभव ? नेह - भरे नैनों से पाई /
क्या छूट गया संज्ञान न कर , क्या पाना है गुनना होगा ,
होंगे तिमिर , विषम पथ , कांटे ,सहते दर्द चलना होगा -------
अंग -वस्त्र क्या सह पाते , तीक्ष्ण , कंटक की धारों को ,
रक्त -बूंद रिसते रहते , तन सहता सतत प्रहारों को /
लौट सके ना कहे शब्द , नव शब्द वृहद् गढ़ना होगा ,
मानस मूक नहीं होता , निःशब्द , पदों को पढ़ना होगा ---------
मन के भाव सृजन बन जाएँ , अंगार ना हो शीतल पानी /
स्नेह , आशीष अभिशप्त न होए , प्यार अमर ,जीवन फ़ानी /
कितने अंक प्रत्यासा में , वरण एक करना होगा ,
सतत चले , रुकने की हसरत , बहुत चले रुकना होगा -----
मुस्कान होंठ पर खिली हुई ,विष भरा ह्रदय ,मद -प्याला है /
अंतर में खंजर , छुपा हुआ , बाहें कपट की शाला है /
अन्दर क्या है? बाहर क्या है ? स्पस्ट तुमें करना होगा ,
भ्रम में जीना मृग -तृष्णा है ,मरू -भूमि कब झरना होगा ?-------
तरकश के तीर हरण जीवन को ,विष बुझे, यत्न से सजे गये ,
लक्ष्य ? मौत निश्चित करने को , वरदान शूरों से लिए गये /
संधान हेतु सम्विग्य ज्ञान , अपराजेय विन्दु का निर्धारण ,
अपनी भाषा, परिभाषा , संवेग - सून्य हठ का कारण /
विकल नहीं तो विकल बनों , जो कह ना सके कहना होगा ------
अनावृत हो छद्म आवरण , नैपथ्य, तुझे उठना होगा ------
उदय वीर सिंह
२३/०१/२०११
मंचित हो हर कथा , व्यथा , नैपथ्य , तुझे उठना होगा ------
मत कह , सब अपने मन की , तुमको भी सुनना होगा ,
जीवन -पथ केवल मुस्कान नहीं , कुछ कांटे भी चुनना होगा /
रीत वल्लरी , प्रीत बनी कब ? जब चली अम्बर की गहराई ,
बिना नीर जीवन कब संभव ? नेह - भरे नैनों से पाई /
क्या छूट गया संज्ञान न कर , क्या पाना है गुनना होगा ,
होंगे तिमिर , विषम पथ , कांटे ,सहते दर्द चलना होगा -------
अंग -वस्त्र क्या सह पाते , तीक्ष्ण , कंटक की धारों को ,
रक्त -बूंद रिसते रहते , तन सहता सतत प्रहारों को /
लौट सके ना कहे शब्द , नव शब्द वृहद् गढ़ना होगा ,
मानस मूक नहीं होता , निःशब्द , पदों को पढ़ना होगा ---------
मन के भाव सृजन बन जाएँ , अंगार ना हो शीतल पानी /
स्नेह , आशीष अभिशप्त न होए , प्यार अमर ,जीवन फ़ानी /
कितने अंक प्रत्यासा में , वरण एक करना होगा ,
सतत चले , रुकने की हसरत , बहुत चले रुकना होगा -----
मुस्कान होंठ पर खिली हुई ,विष भरा ह्रदय ,मद -प्याला है /
अंतर में खंजर , छुपा हुआ , बाहें कपट की शाला है /
अन्दर क्या है? बाहर क्या है ? स्पस्ट तुमें करना होगा ,
भ्रम में जीना मृग -तृष्णा है ,मरू -भूमि कब झरना होगा ?-------
तरकश के तीर हरण जीवन को ,विष बुझे, यत्न से सजे गये ,
लक्ष्य ? मौत निश्चित करने को , वरदान शूरों से लिए गये /
संधान हेतु सम्विग्य ज्ञान , अपराजेय विन्दु का निर्धारण ,
अपनी भाषा, परिभाषा , संवेग - सून्य हठ का कारण /
विकल नहीं तो विकल बनों , जो कह ना सके कहना होगा ------
अनावृत हो छद्म आवरण , नैपथ्य, तुझे उठना होगा ------
उदय वीर सिंह
२३/०१/२०११
4 टिप्पणियां:
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
विकल नहीं तो विकल बनों ,
जो कह ना सके कहना होगा -----------,
अनावृत हो छद्म आवरण ,
नैपथ्य, तुझे उठना होगा ----------
बहुत प्रेरक भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुन्दर
बहुत ही ओजपूर्ण एवं प्रभावशाली रचना !
behad prabhaavshaali aur utkrisht rachna, badhai.
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