नव प्रभात की बेला ,सजाये थाल कुंदन सा ,
भर लें अंक - भर खुशियाँ ,नजराना ऐसा ------------
नए विहान का सूरज ,जलाये ज्ञान की ज्योति ,
ढूंढ़ लें प्यार का संगम , शर्माना कैसा -----------
संभव साध्य होता है , पाकर प्यार का संबल ,
असंभव कुछ नहीं होता , जो कशिश हो मुकम्मल , /
सदायें वरस जाती हैं ,प्रभु से मांग तो कीजै ,
छलका नेह बन सागर, तो इतराना कैसा -------------------
हौसला चाँद छूने का ,एक उछाल तो मारो
हर मंजिल फतह होगी ,एक संकल्प तो पालो /
कम्पित हो उठे जलराशि ,जब विजय का हो मंथन ,
उठे तूफान सागर में , तो घबराना कैसा --------------------
उत्सव हो , ख़ुशी हो , उमंग हो आँगन ,
वर्षा प्रेम की , आशीष की गुलों से भर उठे दामन /
सजाये -मौत मिलती हो , अमन वो चैन के बदले ,
उदय मांग ले हंस के , ठुकराना कैसा ------------------
उदय वीर सिंह
1st.जन . 2011
2 टिप्पणियां:
आदरणीय उदय वीर सिंह जी
नमस्कार !
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.
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