सुन सको मेरी आवाज ,
तो आवाज देना ,
पीछे यवनिका के ,खड़ा कौन ?
मौन व्रती ?
या पश्चाताप में जलता
दर्प ?
प्रकाश में तोड़ी प्रतिज्ञां -- ---- जो वरण की थी !
खंडित हुए प्रतिमान ,टूटी वर्जनाएं ------प्रवृति में !
गूंजा था स्वर अट्ठाहास का -----संज्ञान में !
सगल था ------
प्रलंभन ,मद , हठ , वासना /
ध्वस्त था कानून ,तेरे हाँथ
विजेता ! --
पद प्रतिष्ठा ,सत्ता का मद ,
विवसताओं का उद्गम स्थल ,
कितनी रुचिकाएं हो गयीं तिरोहित ,
तेरे अहंकार में /
जो ना दे सकीं --दक्षिणा , पथ प्रदर्शक !
प्रलोभी ! आज ठगा महसूस करता क्यों है ?
देने को शिखर , मांगी गयी दक्षिणा ,
दे दी तेरी दुलारी ,
अनुगामिनी बनी तेरे पथ की ,
बिन ब्याह ,गर्भिणी हो गयी /
दे दी मौत सुता को ?
क्यों ?
क्यों बना हत्यारा अपने ही खून का ?
तेरे पथ, तेरे आदर्श ,तेरी प्रथा ,
के पालन में ,
तेरे अपने पसंद नहीं ?
क्यों ?
उठाओ नैपथ्य ,
बोलो ,
तोड़ो मौन !
राह किसने बनाई ?
उदय वीर सिंह
२/२/२०११
1 टिप्पणी:
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
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