झिलमिल! झिलमिल !
ले स्वर्ण रश्मियों के तार
अभिसरित हो रहा
प्रभात !
बुन रहा है ,व्योम सुन्दर ,
दे चक्षुओं की तूलिका .....
सृजित कर नव दृश्य ,
कोई गीतिका आकार ले।
विथियाँ प्रलेख हों ,दे सकें गंतव्य को
सुरम्यता की गोंद में,
यश, समृद्धियाँ मिले ,
स्वप्न देखे जाएँ ,
यथार्थ के धरातल ।
संकल्पित हो मानस
स्वप्न ,मनुष्यता के
साकार हों .....।
सहकारिता विस्तार ले ....
- उदय वीर सिंह
7 टिप्पणियां:
बढ़िया प्रस्तुति |
आभार -
सोने जैसा शुभ्र सबेरा..
sundar abhivykti...
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 20/11/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
उम्दा भावलिए सुंदर प्रस्तुति,,,
recent post...: अपने साये में जीने दो.
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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