भूल जाते , देख कर दुःख
तू नदी है प्यार की
बह रहा है , मान पियूष
ले अर्घ, तेरे धार की
तू उज्वला है, सृजन वलय
निः शब्द तेरे पाश में ,
बह गया , घर वेदना का
नेह - सर के न्यास में -
तृप्त मन की आश तुमसे,
कृतज्ञ हूँ उपकार की -
निर्मित हुआ है आत्म बल
पाई तुम्हारी छाँव है
बस गया मन मधुर मेरा ,
जिस ठाँव , तेरा गाँव है-
मांगी न थी पर मिल गया ,
आश भी , आधार भी -
खिलता कमल सा रूप है,
एक बूंद भी, मोती लगे,
सदगुणों की स्वेद आभा,
लिपटे वसन, सोनी लगे-
प्रतिमा बनी आराध्य की तू ,
साध्य की , संस्कार की-
एक प्रबल प्रवंचना है,
तज ,स्वर्ग न जाना कभी-
अवशेष हैं बहु कार्य अग्रे,
अप्रतिम बने यह लोक भी-
मान लेना , मान मेरा,
हठ समझ कर यार की-
है हृदय में संचयित स्वर
निर्मले आभार की-
- उदय वीर सिंह
9 टिप्पणियां:
एक और खुबसूरत प्रस्तुति |
बधाई आदरणीय उदय जी ||
बरसता उपकार रह रह,
रहे तेरी उपस्थिति भर।
मान लेना , मान मेरा,
हठ समझ कर यार की-
है हृदय में संचयित स्वर
निर्मले आभार की-
भावमय उत्कृष्ट पंक्तियाँ,,,,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
बहुत उम्दा!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 6/11/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।
बहुत सुंदर भाव ॥
शब्द सुसज्जित सुन्दर रचना......
आभार !!
तृप्त मन की आस तुम्हीं से... कृतज्ञ हूँ उपकार की......~यही भाव दिल में उठते हैं हर पल...
~सादर
AAPKEE RACHNAA PADH KAR AANANDIT
HO GYAA HUN .
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