न भंवर ने किया कभी रुशवा
मुझे गिला नहीं किनारों से -
कुछ भी माँगा नहीं बहारों से
फ़ासले ना रहे कभी नजारों से -
काँटों ने दिया चुभन हंसकर
मुझे गिला नहीं दयारों से -
जब रकीबों से हुआ याराना
मुआफ़ी की रश्म है यारों से -
नेजे पे रख दिल नुमाईश न करो
ना पाओगे कहीं बाजारों से-
- उदय वीर सिंह
6 टिप्पणियां:
बहुत खूब !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उम्दा........ बेहतरीन !!
सुंदर
nice .....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
एक टिप्पणी भेजें