मानवीय
संवेदनाओं,
का संसार ,क्रूरता को
परिभाषित तो करता है ,
अपनी संवेदनाओं को समेटने को,
क्रूर नहीं कहता ..
घृणा की प्राचीर का प्रांकन तो,
करता है ,
स्पंदन की गोलियां लेकर
आत्ममुग्धता में सो जाने को ,
दायित्व विहीन नहीं कहता l
अपनी आँख धोते हुए घडियाल के
आंसुओं को, बेदना में बांध लेना ,
नीरहीन,सूखे चक्षुओं को
काव्य-भेदन के सिवा
अनुशीलन नहीं मिलता..
सबल नयना को,
निहारते हजारों हैं,
हत-नयना को,
संवेदना के सिवा
संबल नहीं मिलता ....
- उदय वीर सिंह
7 टिप्पणियां:
क्या बात है वाह! बहुत ख़ूब पेशकश
अच्छे भाव ..
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 01- 11 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
इस बार करवाचौथ पर .... एक प्रेम कविता --.। .
भाई उदय जी बहुत अच्छी कविता |
सच कहा आपने, ये प्रश्न तो अब तक अनुत्तरित है..
बहुत बढ़िया!
करवाचौथ की अग्रिम शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर ...
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