पीड़ा से
प्रलाप बड़ा हो गया
विचार से
रात बड़ी हो गई
नींद से
स्वप्न बड़े हो गए
व्योम से
अभिलाषा बड़ी हो गई
बसुधा से
निराशा बड़ी हो गई
आशा से
परीभाषा बड़ी हो गई
यथार्थ से
स्वार्थ बड़ा हो गया
परमार्थ से
तरु बड़े हो गए
बीज से -
बीज रह गया
समाधिस्थ होने को
नवल तरु
निहितार्थ मौन होकर ......
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 14 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
एक टिप्पणी भेजें