तो जले , दीपों की तरह --------
आंसू आँखों से जुड़े, हृदय में रहते ,
फ़ना नहीं होते ,ओश की बूंदों की तरह -----
चलें हमराह की डगर कैसे ?
सुनसान हो गयी है , शमशान की तरह ----------
पीछे ना मुड़ के देख सकी , मंजिल -ए -नज़र अपनी ,
आवाज दे रहा है कोई , प्रीतम की तरह ---------
धुआं -धुआं ,है क्षितिज , दिखता ना कोई उदय ,
सोयी आँखों में ही आ , सपनों की तरह ----------
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सम्मान के निर्माण में , अपमान क्यों बनें ,
बे-आवाज कहीं ना हो , मेरी गीतों की तरह ----------
यादों की अर्थियों पर बसर नहीं जीवन ,
चल सको तो चलो , मेरे साये की तरह ----------------
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उदय वीर सिंह
२२/१२/२०१०
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