रविवार, 26 दिसंबर 2010

, *** छद्म -वेशी ***

शराफत  के   सलाहकार,  कितना  पियोगे  खुद   को   ,            
रुखसत  -ए   -मयखाना   , मददगार   बनना  होगा  ----

 कितनी   मुश्किल  है ,  इंसानियत  की  डगर , उदय
कभी देखना ही पड़ा इनसान ,तो राजदार बनना होगा  -----

मुझे  मालूम  है तेरा जवाब ,झूठ ,फरेब ,कदाचारों  का   ,
कम  से  कम क़यामत  के  दीन  ,इमानदार बनना होगा  ----------

खाक  हो  जाएगी  तेरी सत्ता,सल्तनत ,दह्सते- यारा  ,
उदय ! सरदारी पानी है ,तो   असरदार   बनना    होगा   ----------

रंग-महल  नहीं होता ,रंगमंच ! पिंजरे  के   मानिंद  ,
दिखाना  है   हुनर  अपना , तो  किरदार  बनना होगा  -------

कितना मरे आदमी , फरियादों  की  ड्योध्हियों  पर ,
जख्में-  हालात  बदतर   हैं  , उपचार  बनना    होगा  ------------

                                                             उदय वीर सिंह
                                                            २६/१२/२०१०
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1 टिप्पणी:

Sunil Kumar ने कहा…

भाई उदय सिंह जी ,गज़ल का हर शेर लाजबाब , मुबारक हो लेकिन कुछ टंकन त्रुटियाँ है जैसे दिन कि जगह दीन, और गज़ल का मकता आख़िर में आना चाहिए , माफ़ कीजिये