बुरी नज़रों से हर-पल सन्नद्ध ,
मिटाने को अपनी हस्ती ,
सँवारने को जीवन ,
कितनी ऊँचाईयाँ प्रदान की थीं
मेरे माता -पिता ने / सुरक्षा की दृष्टी से ,
विशाल रूखे ,बृक्ष -शिखर पर साजा था
एक घरौंदा /
घने जंगलों के बिच /
फुदकने का प्रयास करते , आकर बाहर
माता - पिता के साथ /
निहारते दूर तक फैले क्षितिज ,प्रकृति का सुन्दर स्वरुप ,
असंख्य जीव ,उनके स्वर ,
कितना अद्भुत !
नव -,जीवन ,अनुभूतियाँ -,नवल ,
स्व्क्षछंद , विह्वल , प्रकृति के संग समायोजित ,
नवल -गीत के पाठक ,
हम /
****
दबाये चोंच में दाने ,
उतरते नील -अम्बर से
चुगाते मुझे , देते असीम प्यार ,छुपाते पंख में ,
संग निर्देश भी ----
बेटे ! नहीं जाना दूर कोटर से ,
अभी समझ नहीं है ,
न दुनिया की , न उड़ान की /
प्रतिक्षा करो ,समय की !
अगला प्रभात आया ,लेकर बज्रपात ,
गये उड़ान पर ,
मेरे पीर , क्षुधा -शांति का करने प्रयत्न ,
***
आये शिकारी ! बिछाये जाल / तलाशते कोटर - ,कोटर ,
मैं शिकार बन गया /
ले जया गया बाज़ार ,
वहीँ देखा अपने माँ -बाप को दुसरे जाल में ,
आर्तनाद करते हुए ,
दी आवाज उन्हें !आने को आतुर ,पर फासले बहुत ,
मुक्त होने का विफल प्रयत्न / .
मेरे ख़रीददार मिल गये ,
छुटे प्रियजन , जंगल ,का साथ ,
अब पिंजरे में बंद ,लाचार ,
रटता हूँ ! जिसने जो रटाया /
मेरा करुण क्रंदन ,पुकार ,'
उन्हें आनंद देते हैं ,
संगीतमय लगाती है
मेरी याचना !
मैं पिजरे का पंछी !
कहूँ किससे ?
कौन खोले ,मुक्ति के द्वार ?
क्या मेरा गाँधी नहीं लिया अवतार अभी ?
udaya veer singh
11/12/2010
एक घरौंदा /
घने जंगलों के बिच /
फुदकने का प्रयास करते , आकर बाहर
माता - पिता के साथ /
निहारते दूर तक फैले क्षितिज ,प्रकृति का सुन्दर स्वरुप ,
असंख्य जीव ,उनके स्वर ,
कितना अद्भुत !
नव -,जीवन ,अनुभूतियाँ -,नवल ,
स्व्क्षछंद , विह्वल , प्रकृति के संग समायोजित ,
नवल -गीत के पाठक ,
हम /
****
दबाये चोंच में दाने ,
उतरते नील -अम्बर से
चुगाते मुझे , देते असीम प्यार ,छुपाते पंख में ,
संग निर्देश भी ----
बेटे ! नहीं जाना दूर कोटर से ,
अभी समझ नहीं है ,
न दुनिया की , न उड़ान की /
प्रतिक्षा करो ,समय की !
अगला प्रभात आया ,लेकर बज्रपात ,
गये उड़ान पर ,
मेरे पीर , क्षुधा -शांति का करने प्रयत्न ,
***
आये शिकारी ! बिछाये जाल / तलाशते कोटर - ,कोटर ,
मैं शिकार बन गया /
ले जया गया बाज़ार ,
वहीँ देखा अपने माँ -बाप को दुसरे जाल में ,
आर्तनाद करते हुए ,
दी आवाज उन्हें !आने को आतुर ,पर फासले बहुत ,
मुक्त होने का विफल प्रयत्न / .
मेरे ख़रीददार मिल गये ,
छुटे प्रियजन , जंगल ,का साथ ,
अब पिंजरे में बंद ,लाचार ,
रटता हूँ ! जिसने जो रटाया /
मेरा करुण क्रंदन ,पुकार ,'
उन्हें आनंद देते हैं ,
संगीतमय लगाती है
मेरी याचना !
मैं पिजरे का पंछी !
कहूँ किससे ?
कौन खोले ,मुक्ति के द्वार ?
क्या मेरा गाँधी नहीं लिया अवतार अभी ?
udaya veer singh
11/12/2010
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