रविवार, 5 दिसंबर 2010

स्वर्ण -लता

माँ,कहती ,  स्वर्ण-लता ,लगाना  
कीर्ति मिलती है /
लहलहाती हुई ,
 स्वर्णलता ,
अब मैं देखता हूँ ,--
लान ,करीने , कंगूरे , स्वागत- द्वार ,मोढ़े पर नहीं पाई  जाती /,
अनुवांशिक गुण  ही अपना  बदल लिया  ,
विकसित कर लिया है ,नया जीन  / ---
अब जीवन की प्रत्येक शाखाओं को अपनी आकर्षक मजबूत बाँहों में ,
समेटने को तत्पर ,
अपने प्रखर  रूप ,स्वरुप , का करती निर्लज्ज प्रदर्शन ,
आहत करता है मन को  /
कभी दर्शनीय ,शुभ थी ,संजोयी जाती निश्चित स्थानों पर  ,
अब भ्रष्ट -लता  /
 नित्य निंदनीय ,प्रत्येक जगह है ,
केवल पथ्यर ,बंज़र ,स्वाभिमानी डयोढीयों को छोड़  /
क्योंकि वहाँ देवता संत ,सज्ज़न अब  वास करते  हैं  ,
नहीं मिलती उर्वरा शक्ति ,निस्तेज  हो सुख जाती है वहां  /
विकास  ,परिमार्जन   ऊँचे मानदंड , तो    पाती है  ---
राजनेता ,नौकर-शाह, संज्ञा -सून्य व्यसायियों , अपराधियों  के द्वार   /
पतझड़  से  दूर ,  व्याधिहीन ,  सुरक्षित ,
दबंग ,कितनी निडर है !
अपनी मुठी में दबा --दया, क्षमा ,सत्य ,सहयोग ,यहाँ तक कानून भी ,
दुस्साहस  भरा प्रयास ,
कितना सफल ?
दवा ,खाद्यान ,दूध,  चढ़ते भेंट  मिलावट के ,
गिरते नए मकान ,पूल ,बेचते -अनुदान  ,  दस्तावेज ,
यहाँ तक देश    के   ,प्रलेख    भी !
कमीशन पर मिलती निधियां ,
बनते कुबेर /
समाज- सेवक  ,लोकसेवक खाते कसम  , इमान की ,भगवान की ,
सीमित   आय     /
असीमित कैसे हो गयी  /
फार्म हॉउस  ,होटल अट्टालिकाएं मिल ,कारखाने
धनपतियों में सुमार ,धन- पशु ,
 कहाँ से लाये,  अकूत धनराशि ?  बेपनाह   ऐश्वर्य ?
इन्द्र देवता के सामान !स्वर्ण- लता के पालक   /
जहाँ आज भी ३५%आबादी दो जून रोटी  की  मुहताज !
दर्शनीया ,स्वर्ण -लता     ,
बन गयी    भ्रष्ट -बेल    !
सतत     फैलती ही  जा   रही     है /
मिल रही     उर्वर       मिटटी     ,और    माली       भी  /

                                            उदय  वीर  सिंह 
                                            5/12/2010

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