माँ,कहती , स्वर्ण-लता ,लगाना
कीर्ति मिलती है /
लहलहाती हुई ,
स्वर्णलता ,
अब मैं देखता हूँ ,--
लान ,करीने , कंगूरे , स्वागत- द्वार ,मोढ़े पर नहीं पाई जाती /,
अनुवांशिक गुण ही अपना बदल लिया ,
विकसित कर लिया है ,नया जीन / ---
अब जीवन की प्रत्येक शाखाओं को अपनी आकर्षक मजबूत बाँहों में ,
समेटने को तत्पर ,
अपने प्रखर रूप ,स्वरुप , का करती निर्लज्ज प्रदर्शन ,
आहत करता है मन को /
कभी दर्शनीय ,शुभ थी ,संजोयी जाती निश्चित स्थानों पर ,
अब भ्रष्ट -लता /
नित्य निंदनीय ,प्रत्येक जगह है ,
केवल पथ्यर ,बंज़र ,स्वाभिमानी डयोढीयों को छोड़ /
क्योंकि वहाँ देवता संत ,सज्ज़न अब वास करते हैं ,
नहीं मिलती उर्वरा शक्ति ,निस्तेज हो सुख जाती है वहां /
विकास ,परिमार्जन ऊँचे मानदंड , तो पाती है ---
राजनेता ,नौकर-शाह, संज्ञा -सून्य व्यसायियों , अपराधियों के द्वार /
पतझड़ से दूर , व्याधिहीन , सुरक्षित ,
दबंग ,कितनी निडर है !
अपनी मुठी में दबा --दया, क्षमा ,सत्य ,सहयोग ,यहाँ तक कानून भी ,
दुस्साहस भरा प्रयास ,
कितना सफल ?
दवा ,खाद्यान ,दूध, चढ़ते भेंट मिलावट के ,
गिरते नए मकान ,पूल ,बेचते -अनुदान , दस्तावेज ,
यहाँ तक देश के ,प्रलेख भी !
कमीशन पर मिलती निधियां ,
बनते कुबेर /
समाज- सेवक ,लोकसेवक खाते कसम , इमान की ,भगवान की ,
सीमित आय /
असीमित कैसे हो गयी /
फार्म हॉउस ,होटल अट्टालिकाएं मिल ,कारखाने
धनपतियों में सुमार ,धन- पशु ,
कहाँ से लाये, अकूत धनराशि ? बेपनाह ऐश्वर्य ?
इन्द्र देवता के सामान !स्वर्ण- लता के पालक /
जहाँ आज भी ३५%आबादी दो जून रोटी की मुहताज !
दर्शनीया ,स्वर्ण -लता ,
बन गयी भ्रष्ट -बेल !
सतत फैलती ही जा रही है /
मिल रही उर्वर मिटटी ,और माली भी /
उदय वीर सिंह
5/12/2010
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