नव - वरस, मधु- कलश , रस -बहारें लिए ,
कुछ तुम्हारे लिए , कुछ हमारे लिए ------------
प्रेम के बाग में फूल खिलने लगे ,
नेह -आंचल में हंस के छुपा लेंगे हम //
पतझड़ ना आये , ना आये तपन ,
ह्रदय की तली में बचा लेंगे हम //
प्रिय प्रियतम के सपने सहारे लिए -----------
प्रीत नैनों में बस के छलकने लगी ,
पलकों में हंस के बिठा लेंगे हम //
प्यार , अर्पित , समर्पित बिखरने लगे ,
सिर झुका लेंगे हम ,गल लगा लेंगे हम //
अपने दामन में चंदा ,सितारें लिए --------------
रूठी रुत ना मिले , न अँधेरा रहे ,
प्रीतम को हंस के मना लेंगे हम //
आये मंगल बरस, बिन सुमन ही सही ,
काँटों से उपवन , सजा लेंगे हम //
गम भी मुबारक , प्यार संचित रहे ,
सारी जीवन की खुशियाँ तुम्हारे लिए --------
उदय वीर सिंह
३०/१२/2010
शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
**भ्रंश**
मेरे
हमसफ़र ,
डूबती रात में
उतराकर,
चाँद बन गया /
क्यों चिढ़ता है मुझे ,
अमावास की रात बाकी है /---------
मुझे रहने दे ,
आगोश में
यादों के /
वादियों ,सागरों ,पहाड़ों में ,
ढूढता हूँ ,तेरी परछाईं /
नहीं मिलती /
आरत मन ,उद्विग्न होता है ,टूटता है ,/
जानकर ---
तेरा साया भी तेरे साथ नहीं /
छल था मेरा ,हमराह बनना !
अलसुबह ,नहीं होगा वजूद तेरा
अभागी ओश की तरह /
प्रखरित होगा दिनकर ,
व्योम में /------------
उदय वीर सिंह
३०/१२/२०१०
बुधवार, 29 दिसंबर 2010
*** आशा की डोर ****
मत सोच अकिंचन ,चलता जा ,
सद्ज्ञान कहीं पर मिल जाता --------
अपमान कहीं जो मिलता है ,
सम्मान कहीं पर , मिल जाता /
डूबा सूरज , अस्ताचल ,
चाँद कहीं पर मिल जाता /-------
छूटा नाविक , पतवार गयी ,
मझधार कहीं पर मिल जाता /
चल लहरोँ की नावों पर ,
किनार कहीं पर ,मिल जाता ----------
स्थापित करता मानदंड ,
इन्शान कहीं पर मिल जाता /
मर्यादा की लिखता गाथा ,
शैतान , कहीं पर मिल जाता -----------
,
मधुबन से वैर पतझड़ मिलते
फूलों को कांटे मिल जाते ,
मरू -भूमि का दग्ध -क्षितिज
नखलिस्तान कहीं पर मिल जाता ---------
मिले वेदना , हृदय अवसादित ,
प्रेम कहीं पर मिल जाता /
सरल नहीं मानव मिलना ,
भगवान कहीं पर मिल जाता ----------------
उदय वीर सिंह .
29/12/2010
सद्ज्ञान कहीं पर मिल जाता --------
अपमान कहीं जो मिलता है ,
सम्मान कहीं पर , मिल जाता /
डूबा सूरज , अस्ताचल ,
चाँद कहीं पर मिल जाता /-------
छूटा नाविक , पतवार गयी ,
मझधार कहीं पर मिल जाता /
चल लहरोँ की नावों पर ,
किनार कहीं पर ,मिल जाता ----------
स्थापित करता मानदंड ,
इन्शान कहीं पर मिल जाता /
मर्यादा की लिखता गाथा ,
शैतान , कहीं पर मिल जाता -----------
,
मधुबन से वैर पतझड़ मिलते
फूलों को कांटे मिल जाते ,
मरू -भूमि का दग्ध -क्षितिज
नखलिस्तान कहीं पर मिल जाता ---------
मिले वेदना , हृदय अवसादित ,
प्रेम कहीं पर मिल जाता /
सरल नहीं मानव मिलना ,
भगवान कहीं पर मिल जाता ----------------
उदय वीर सिंह .
29/12/2010
मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
**माँ ही जाने पीर **
ना बीता ,
ना बिता सका , जितना चाहा /
जो बीता , तेरे सानिध्य में ,गोंद में ,
पुनः पाने की लालसा ------
मैं जानता हूँ , पूरी नहीं हो सकती ,
पीछे नहीं लौट सकता समय /
फिर भी स्मृतियों में ढूँढता हूँ ,
तुम्हें /
अध्ययन ,बना निर्वासन ,
कुछ बनने की आस ,प्रयास ,
तब तक छूटा साथ ------
विस्मृत नहीं होते वो पल ,
खिली धूप में , गोंद में रखे सिर ,निकालती जुएँ /
सुनाती साखियाँ रातों में ,
गाती लोरी ---[साडी आँखा विचों सोया पुत मेरा-----------]
सुलाने का विफल प्रयास /
देखे स्वप्न, बड़ा बनाने का ,निष्चल निर्देश -------
आंसू नहीं /क्रोध नहीं /विवाद नहीं /--अरदास करनी !
सब्र ,संयम ,साहस की मांगती दुआएं ,
जो लगीं मुझे /
छिपाकर देना --पिन्नियां ,पैसे ,बुने स्वेटर ,जुराबें,
जो अब नहीं मिलते /
पाल्य पूछते हैं ---
पापा कैसी थीं ,आपकी माँ ?
बताता हूँ ---तेरी माँ जैसी /
सभी मांएं, माँ जैसी /
-------- कहता मुझे कोई नहीं अब ------
वीर----- वीर -बिना खाए नहीं सोना ,
नाराज होंगे --बाबा जी /
जीवन गतिमान है --चलता आया ,
स्मृतियाँ स्थिर हैं ,वहीँ अतीत में ,
क्या करूँ विस्मृत नहीं होतीं -------
उदय वीर सिंह
२७/१२/२०१०
ना बिता सका , जितना चाहा /
जो बीता , तेरे सानिध्य में ,गोंद में ,
पुनः पाने की लालसा ------
मैं जानता हूँ , पूरी नहीं हो सकती ,
पीछे नहीं लौट सकता समय /
फिर भी स्मृतियों में ढूँढता हूँ ,
तुम्हें /
अध्ययन ,बना निर्वासन ,
कुछ बनने की आस ,प्रयास ,
तब तक छूटा साथ ------
विस्मृत नहीं होते वो पल ,
खिली धूप में , गोंद में रखे सिर ,निकालती जुएँ /
सुनाती साखियाँ रातों में ,
गाती लोरी ---[साडी आँखा विचों सोया पुत मेरा-----------]
सुलाने का विफल प्रयास /
देखे स्वप्न, बड़ा बनाने का ,निष्चल निर्देश -------
आंसू नहीं /क्रोध नहीं /विवाद नहीं /--अरदास करनी !
सब्र ,संयम ,साहस की मांगती दुआएं ,
जो लगीं मुझे /
छिपाकर देना --पिन्नियां ,पैसे ,बुने स्वेटर ,जुराबें,
जो अब नहीं मिलते /
पाल्य पूछते हैं ---
पापा कैसी थीं ,आपकी माँ ?
बताता हूँ ---तेरी माँ जैसी /
सभी मांएं, माँ जैसी /
-------- कहता मुझे कोई नहीं अब ------
वीर----- वीर -बिना खाए नहीं सोना ,
नाराज होंगे --बाबा जी /
जीवन गतिमान है --चलता आया ,
स्मृतियाँ स्थिर हैं ,वहीँ अतीत में ,
क्या करूँ विस्मृत नहीं होतीं -------
उदय वीर सिंह
२७/१२/२०१०
रविवार, 26 दिसंबर 2010
***प्रीतम ***
{शीघ्र प्रकाशित होने वाली मेरी पुस्तक से- ------}
कुछ विनय भरी ,कुछ प्रेम भरी ,
कुछ कड़वी , सुन लो प्रीतम -----
निखिल विश्व में ,एक सलोने
सब कहते , तुमको प्रीतम -------
होंठों पर मुस्कान प्रतिष्ठित ,
कुंदन सा सुन्दर प्रीतम ---------
चन्दन सा घिस भाल संभाले ,
इतना इक्षित होता प्रीतम --------
फीके आभूषण, आभा हीन ,
श्री -प्रकाश होता प्रीतम -------
निशा घनेरी विषम पलों में ,
दिनकर बन जाता प्रीतम --------
जलता सूरज सावन मांगे ,
तपता राही छांव मिले ----
बंधी प्रीत भूले जो गोरी ,
उसे प्रीतम का गांव मिले -------
कोयल कूके प्रीतम- प्रीतम ,
कागा भी संग बोल रहा -------
राज -हंस का प्रेम - ग्रन्थ भी ,
प्रीतम का संग खोज रहा -----------
क्रमशः ----------
उदय वीर सिंह
२६/१२/२०१०/
, *** छद्म -वेशी ***
शराफत के सलाहकार, कितना पियोगे खुद को ,
रुखसत -ए -मयखाना , मददगार बनना होगा ----
कितनी मुश्किल है , इंसानियत की डगर , उदय
कभी देखना ही पड़ा इनसान ,तो राजदार बनना होगा -----
मुझे मालूम है तेरा जवाब ,झूठ ,फरेब ,कदाचारों का ,
कम से कम क़यामत के दीन ,इमानदार बनना होगा ----------
खाक हो जाएगी तेरी सत्ता,सल्तनत ,दह्सते- यारा ,
उदय ! सरदारी पानी है ,तो असरदार बनना होगा ----------
रंग-महल नहीं होता ,रंगमंच ! पिंजरे के मानिंद ,
दिखाना है हुनर अपना , तो किरदार बनना होगा -------
कितना मरे आदमी , फरियादों की ड्योध्हियों पर ,
जख्में- हालात बदतर हैं , उपचार बनना होगा ------------
उदय वीर सिंह
२६/१२/२०१०
-
रुखसत -ए -मयखाना , मददगार बनना होगा ----
कितनी मुश्किल है , इंसानियत की डगर , उदय
कभी देखना ही पड़ा इनसान ,तो राजदार बनना होगा -----
मुझे मालूम है तेरा जवाब ,झूठ ,फरेब ,कदाचारों का ,
कम से कम क़यामत के दीन ,इमानदार बनना होगा ----------
खाक हो जाएगी तेरी सत्ता,सल्तनत ,दह्सते- यारा ,
उदय ! सरदारी पानी है ,तो असरदार बनना होगा ----------
रंग-महल नहीं होता ,रंगमंच ! पिंजरे के मानिंद ,
दिखाना है हुनर अपना , तो किरदार बनना होगा -------
कितना मरे आदमी , फरियादों की ड्योध्हियों पर ,
जख्में- हालात बदतर हैं , उपचार बनना होगा ------------
उदय वीर सिंह
२६/१२/२०१०
-
***ईशा -मशीह ***
तेरा आगमन
नए युग का ,
नए प्रभात का ,
नयी रीत का ,
नयी प्रीत का
नयी गीत का ,
शुभ अभिनन्दन ,बंदन तेरा ,
हे देव दूत ,शांति दूत, अग्रदूत !
तेरा दर्शन ---
बहे दया ,करें क्षमां
झरे प्यार ,
बहता रहे --प्रतेक हृदय में , युगों तक /
शलीब की सेज भी प्यारी ,
अगर दे सकें ,प्यार, सृजन
संसार को
इन्सानियत को /
जो तुने दिया /
चल सकें तेरी राह ,कुछ कदम ही सही ,
इंसान बनकर /
उदय वीर सिंह
२५/१२/२०१०
नए युग का ,
नए प्रभात का ,
नयी रीत का ,
नयी प्रीत का
नयी गीत का ,
शुभ अभिनन्दन ,बंदन तेरा ,
हे देव दूत ,शांति दूत, अग्रदूत !
तेरा दर्शन ---
बहे दया ,करें क्षमां
झरे प्यार ,
बहता रहे --प्रतेक हृदय में , युगों तक /
शलीब की सेज भी प्यारी ,
अगर दे सकें ,प्यार, सृजन
संसार को
इन्सानियत को /
जो तुने दिया /
चल सकें तेरी राह ,कुछ कदम ही सही ,
इंसान बनकर /
उदय वीर सिंह
२५/१२/२०१०
शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010
** जी प्याज जी **
आया बयान ,
शिखर से !
समुचित भण्डारण के अभाव में सडा /
कार्यवाही होगी /
चढ़ा मूल्य आसमान पर ,
केशर की तरह / ,सूंघें या खाएं ?
अमूल्य दर्शन !,
बजट अनियंत्रित , सरकार की तरह ,
खरीदें या देखकर ही हो लें संतुष्ट /
दुष्ट मन नहीं मानता ,
दास तृष्णा का , स्वाद का /
ख़रीदा चार नग ,
पारदर्शी थैले में ले आया ,
ऊँची बांह कर /
देख ले जमाना !
हम भी खरीद सकते हैं प्याज /
नेताओं, पूंजीपतियों, अफसरों की तरह /
दुर्भाग्य !
रास्ते में मिले उचक्के ,
मारा झपट्टा ,
फटा थैला ,
दो ले गये , दो गिरे जमीन पर /
उठाया दुखी मन ! क्या ब्यवस्था है /
लाया घर , 'तरन ' बोली ------
एक दे आओ, लंगर के लिए /
बचा एक रसोई के लिए /
आँखों से आंसू निकल रहे हैं ,
उसके भी !,
मेरे भी !
वह काट रही है ,
मैं कोस रहा हूँ /
ब्यवस्था को ,महंगायी को /
प्याज जी आना मेरे देश ---------- /
उदय वीर सिंह
२३/१२/२०१० ,
गुरुवार, 23 दिसंबर 2010
**** दो शब्द * ***
उन्माद की राहों में ,पनाहों में ,
बसर नहीं होता --------------
गुमनाम - सी गलीयों में कहीं ,
अपना , शहर नहीं होता ----------
ताजमहल होता यादों के समंदर जैसा ,
रहने के लिए वो , घर नहीं होता ---------
झूठे वादों में ,इरादों में रूहानी बनते ,
आया जो इस जमीं पर , अमर नहीं होता ---------
फूल खिलता है ख्वावों में ,ख्यालों में ,
कभी नज़र नहीं होता ----------------
पल दो पल का साथ रहा , हमराह कोई ,
हमसफ़र नहीं होता ---------
वफ़ा -ए यार के किस्से बयाँ नहीं होते ,
छपे अख़बार में , वो खबर नहीं होता --------
जलता है जिगर ,जज्ज्बात की लौ ,कहो ना कौन ? ,
जख्में - जिगर नहीं होता --------------
उदय वीर सिंह
23/12/2010
बसर नहीं होता --------------
गुमनाम - सी गलीयों में कहीं ,
अपना , शहर नहीं होता ----------
ताजमहल होता यादों के समंदर जैसा ,
रहने के लिए वो , घर नहीं होता ---------
झूठे वादों में ,इरादों में रूहानी बनते ,
आया जो इस जमीं पर , अमर नहीं होता ---------
फूल खिलता है ख्वावों में ,ख्यालों में ,
कभी नज़र नहीं होता ----------------
पल दो पल का साथ रहा , हमराह कोई ,
हमसफ़र नहीं होता ---------
वफ़ा -ए यार के किस्से बयाँ नहीं होते ,
छपे अख़बार में , वो खबर नहीं होता --------
जलता है जिगर ,जज्ज्बात की लौ ,कहो ना कौन ? ,
जख्में - जिगर नहीं होता --------------
उदय वीर सिंह
23/12/2010
*** निर्मोह ***
किसी का प्रेम जले ,
तो जले , दीपों की तरह --------
आंसू आँखों से जुड़े, हृदय में रहते ,
फ़ना नहीं होते ,ओश की बूंदों की तरह -----
चलें हमराह की डगर कैसे ?
सुनसान हो गयी है , शमशान की तरह ----------
पीछे ना मुड़ के देख सकी , मंजिल -ए -नज़र अपनी ,
आवाज दे रहा है कोई , प्रीतम की तरह ---------
धुआं -धुआं ,है क्षितिज , दिखता ना कोई उदय ,
सोयी आँखों में ही आ , सपनों की तरह ----------
-
सम्मान के निर्माण में , अपमान क्यों बनें ,
बे-आवाज कहीं ना हो , मेरी गीतों की तरह ----------
यादों की अर्थियों पर बसर नहीं जीवन ,
चल सको तो चलो , मेरे साये की तरह ----------------
-
उदय वीर सिंह
२२/१२/२०१०
रविवार, 19 दिसंबर 2010
**निर्वाध**
शाम होने को है ,एक घरौंदा कहीं ,
सफ़र के लिए हम -सफ़र मांगिये ------
सिर्फ देने की आदत बदल डालिए ,
मिल सके जिंदगी ,तो कफ़न मांगिये -------
पैरों में छाले , मुनासिब नहीं ,
चलते रहे राह , मिलते रहे /
छाप छोड़ी पैरों की ,लहू से रंगे ,
मंजिल -ए- मुसाफिर ,सलामत मिले /
मुकम्मल जिंदगी ,तो मयस्सर नहीं ,
कुछ मिली तो ,जीने का हुनर मांगिये -------
सुर्खुरू होके , जीना तो सब चाहते ,
दाग दामन , में लगना गवारा नहीं / ,
दाग , बन बे-नशीबी ,मुकद्दर बने ,
बे- दाग होने का फन मांगिये -----------
जख्म पाए , जिन्हें आप गिन ना सके , .
उनको महफूज रखने को , घर मांगिये ---------
उदय वीर सिंह
१९/१२/२०१० .
सफ़र के लिए हम -सफ़र मांगिये ------
सिर्फ देने की आदत बदल डालिए ,
मिल सके जिंदगी ,तो कफ़न मांगिये -------
पैरों में छाले , मुनासिब नहीं ,
चलते रहे राह , मिलते रहे /
छाप छोड़ी पैरों की ,लहू से रंगे ,
मंजिल -ए- मुसाफिर ,सलामत मिले /
मुकम्मल जिंदगी ,तो मयस्सर नहीं ,
कुछ मिली तो ,जीने का हुनर मांगिये -------
सुर्खुरू होके , जीना तो सब चाहते ,
दाग दामन , में लगना गवारा नहीं / ,
दाग , बन बे-नशीबी ,मुकद्दर बने ,
बे- दाग होने का फन मांगिये -----------
जख्म पाए , जिन्हें आप गिन ना सके , .
उनको महफूज रखने को , घर मांगिये ---------
उदय वीर सिंह
१९/१२/२०१० .
शनिवार, 18 दिसंबर 2010
***आंचल ***
चराचर का
मूर्त ,
प्रवाहित रसधार ,
अमृत का स्रोत ,
बिरंची की विभिन्ताओं का पर्याय ,
स्थूल /
निखिल ब्रह्माण्ड का soogyat स्थल ,
शरण स्थली ,अजेय विजेताओं की ,
भूले ,बिसरे उपेक्षित आशाओं की ,
नमन ,स्थल -
योगी , यती , देवताओं का /
एक मात्र सुरक्षित कवच ,
जीव के सृजन का /
निर्माण जिसका अद्वितीय ,
आकार vishal इतना ,
असंख्य ताज, महल समां जाये /
साक्षी अनंत काल का ,
अतीत का ,
भविष्य का ,
वर्तमान का ,
- देदीप्यामान ,हस्ताक्षर /
मिट गये राजा और रंक ,
मिटे सृजन ,श्रीस्तियाँ ,स्मृतियाँ ,
प्रभा -मय ,निर्भय ,
अडिग आज भी
निश्चल भाव में है /
नहीं है इसके पास ,
दैन्यता ,विपन्नता ,पक्षपात ,
भेद , भ्रष्टाचार ,
ना कोई श्याह , ना सफ़ेद /
विकृतियाँ हमारी हैं ---
मिटने को , मिटाने को तत्पर ,
बनने को इश्वर !
होकर निरुतार
लौटते हैं ,
gahate हैं शरण /
यात्रा का प्रारंभ ,
अंतिम पड़ाव ,
-आंचल .......
माँ का या मौत का /
उदय वीर सिंह ,
१७/१२/२०१०
रविवार, 12 दिसंबर 2010
पिंजरे का पंछी
खुनी पंजों ,विषधरों ,
बुरी नज़रों से हर-पल सन्नद्ध ,
मिटाने को अपनी हस्ती ,
सँवारने को जीवन ,
कितनी ऊँचाईयाँ प्रदान की थीं
मेरे माता -पिता ने / सुरक्षा की दृष्टी से ,
विशाल रूखे ,बृक्ष -शिखर पर साजा था
एक घरौंदा /
घने जंगलों के बिच /
फुदकने का प्रयास करते , आकर बाहर
माता - पिता के साथ /
निहारते दूर तक फैले क्षितिज ,प्रकृति का सुन्दर स्वरुप ,
असंख्य जीव ,उनके स्वर ,
कितना अद्भुत !
नव -,जीवन ,अनुभूतियाँ -,नवल ,
स्व्क्षछंद , विह्वल , प्रकृति के संग समायोजित ,
नवल -गीत के पाठक ,
हम /
****
दबाये चोंच में दाने ,
उतरते नील -अम्बर से
चुगाते मुझे , देते असीम प्यार ,छुपाते पंख में ,
संग निर्देश भी ----
बेटे ! नहीं जाना दूर कोटर से ,
अभी समझ नहीं है ,
न दुनिया की , न उड़ान की /
प्रतिक्षा करो ,समय की !
अगला प्रभात आया ,लेकर बज्रपात ,
गये उड़ान पर ,
मेरे पीर , क्षुधा -शांति का करने प्रयत्न ,
***
आये शिकारी ! बिछाये जाल / तलाशते कोटर - ,कोटर ,
मैं शिकार बन गया /
ले जया गया बाज़ार ,
वहीँ देखा अपने माँ -बाप को दुसरे जाल में ,
आर्तनाद करते हुए ,
दी आवाज उन्हें !आने को आतुर ,पर फासले बहुत ,
मुक्त होने का विफल प्रयत्न / .
मेरे ख़रीददार मिल गये ,
छुटे प्रियजन , जंगल ,का साथ ,
अब पिंजरे में बंद ,लाचार ,
रटता हूँ ! जिसने जो रटाया /
मेरा करुण क्रंदन ,पुकार ,'
उन्हें आनंद देते हैं ,
संगीतमय लगाती है
मेरी याचना !
मैं पिजरे का पंछी !
कहूँ किससे ?
कौन खोले ,मुक्ति के द्वार ?
क्या मेरा गाँधी नहीं लिया अवतार अभी ?
udaya veer singh
11/12/2010
एक घरौंदा /
घने जंगलों के बिच /
फुदकने का प्रयास करते , आकर बाहर
माता - पिता के साथ /
निहारते दूर तक फैले क्षितिज ,प्रकृति का सुन्दर स्वरुप ,
असंख्य जीव ,उनके स्वर ,
कितना अद्भुत !
नव -,जीवन ,अनुभूतियाँ -,नवल ,
स्व्क्षछंद , विह्वल , प्रकृति के संग समायोजित ,
नवल -गीत के पाठक ,
हम /
****
दबाये चोंच में दाने ,
उतरते नील -अम्बर से
चुगाते मुझे , देते असीम प्यार ,छुपाते पंख में ,
संग निर्देश भी ----
बेटे ! नहीं जाना दूर कोटर से ,
अभी समझ नहीं है ,
न दुनिया की , न उड़ान की /
प्रतिक्षा करो ,समय की !
अगला प्रभात आया ,लेकर बज्रपात ,
गये उड़ान पर ,
मेरे पीर , क्षुधा -शांति का करने प्रयत्न ,
***
आये शिकारी ! बिछाये जाल / तलाशते कोटर - ,कोटर ,
मैं शिकार बन गया /
ले जया गया बाज़ार ,
वहीँ देखा अपने माँ -बाप को दुसरे जाल में ,
आर्तनाद करते हुए ,
दी आवाज उन्हें !आने को आतुर ,पर फासले बहुत ,
मुक्त होने का विफल प्रयत्न / .
मेरे ख़रीददार मिल गये ,
छुटे प्रियजन , जंगल ,का साथ ,
अब पिंजरे में बंद ,लाचार ,
रटता हूँ ! जिसने जो रटाया /
मेरा करुण क्रंदन ,पुकार ,'
उन्हें आनंद देते हैं ,
संगीतमय लगाती है
मेरी याचना !
मैं पिजरे का पंछी !
कहूँ किससे ?
कौन खोले ,मुक्ति के द्वार ?
क्या मेरा गाँधी नहीं लिया अवतार अभी ?
udaya veer singh
11/12/2010
शनिवार, 11 दिसंबर 2010
प्रवाह
पथ गमन कर चले ,तज सजे दो फलक ;
स्मृतियों में बसे वेदना बन चले -----------
बादलों के नगर , दामिनी से जले ,
खंडित हुए , यातना बन चले -------
दंश हर -पल हृदय , बेधते ही रहे ,
गुल ,गुलाबों के घर , वासना बन चले --------
आगमन में खनक है ,गमन में तड़फ ,
स्वप्न ,संचित रहे चेतना बन चले ----------
पथ निहारें पलक , आगमन हो ना हो ,
वो प्रतिक्षा ही क्या कामना बन चले -------
प्रेम की राग निकलेगी , हर साज से ?
ये जरुरी नहीं , वो गज़ल बन चले -----
जो झुका ही नहीं पा के उंचाईयां ,
उदय तज धरा , आसमां बन चले -----------
उदय वीर सिंह
११/ १२ /२०१०
बुधवार, 8 दिसंबर 2010
**बेईमानी **
बेईमान हुआ मेरा मन ,
चुराना चाहा ,
ईमानदारी ,
सवेर हो गयी /
मंदिरों में बजती घंटियाँ ,
मस्जिदों से आती अजान ,
गुरुद्वारों से प्रवाहित शब्द ,
व्यवधान बन रहे थे /
ले चले गये साथ उसे ,
इमानदार !
अर्चना के लिए /----
मै ढीठ, जा पहुंचा ,
तलाश में उनकी / वे आयेगें इसी डगर से /
प्राप्त कर लूँगा ,चाहे जैसे ,
ईमानदारी को /
दिखे, आये ,वे पास ,
माँगा मैंने /--
दे दो मझे ईमानदारी /
दैन्य हूँ , इसके बिना ,/
सब कुछ है मेरे पास , सिवा इसके /
मै चाहता हूँ इसका सानिध्य ,
तेजस्वी भाल , दहकते नैन , बढ़ा आगे ,
बढाया हाँथ /,
बोला --ले संभाल !
भद्र !
यह , भष्म है ! जलने के बाद मिलती है /
शरीर व् आत्मा शुद्ध हो जाते हैं ,
सदा के लिए /
भार, अग्नि , वेदना , संवेदना , समर्पण है इसमें ,
लेगा संभाल !
ले लिया बुझे मन से , रत हूँ /
सभालने में /
सिक्त है मन , उपाधियों से /
अभिभूत है प्रशंसा से /
bola
चुराना चाहा ,
ईमानदारी ,
सवेर हो गयी /
मंदिरों में बजती घंटियाँ ,
मस्जिदों से आती अजान ,
गुरुद्वारों से प्रवाहित शब्द ,
व्यवधान बन रहे थे /
ले चले गये साथ उसे ,
इमानदार !
अर्चना के लिए /----
मै ढीठ, जा पहुंचा ,
तलाश में उनकी / वे आयेगें इसी डगर से /
प्राप्त कर लूँगा ,चाहे जैसे ,
ईमानदारी को /
दिखे, आये ,वे पास ,
माँगा मैंने /--
दे दो मझे ईमानदारी /
दैन्य हूँ , इसके बिना ,/
सब कुछ है मेरे पास , सिवा इसके /
मै चाहता हूँ इसका सानिध्य ,
तेजस्वी भाल , दहकते नैन , बढ़ा आगे ,
बढाया हाँथ /,
बोला --ले संभाल !
भद्र !
यह , भष्म है ! जलने के बाद मिलती है /
शरीर व् आत्मा शुद्ध हो जाते हैं ,
सदा के लिए /
भार, अग्नि , वेदना , संवेदना , समर्पण है इसमें ,
लेगा संभाल !
ले लिया बुझे मन से , रत हूँ /
सभालने में /
सिक्त है मन , उपाधियों से /
अभिभूत है प्रशंसा से /
कल के साथी , दूर तक नहीं आते नज़र /
कहीं छूत , ना लग जाये /
बस !
अब साथ हैं --कंटक -पथ , अकेली मेरी छाया ,
टीसता दर्द ,
बिना कफ़न , प्रवाहित करना पड़ा ,
अर्धांगिनी को!
भाष्मित नहीं कर सका , अभाव में /
सिवा अफशोश व् सहानुभूतियों के ,
जो मिलीं मुझे /
उदय वीर सिंह
०७/१२/२०१०
bola
रविवार, 5 दिसंबर 2010
स्वर्ण -लता
माँ,कहती , स्वर्ण-लता ,लगाना
कीर्ति मिलती है /
लहलहाती हुई ,
स्वर्णलता ,
अब मैं देखता हूँ ,--
लान ,करीने , कंगूरे , स्वागत- द्वार ,मोढ़े पर नहीं पाई जाती /,
अनुवांशिक गुण ही अपना बदल लिया ,
विकसित कर लिया है ,नया जीन / ---
अब जीवन की प्रत्येक शाखाओं को अपनी आकर्षक मजबूत बाँहों में ,
समेटने को तत्पर ,
अपने प्रखर रूप ,स्वरुप , का करती निर्लज्ज प्रदर्शन ,
आहत करता है मन को /
कभी दर्शनीय ,शुभ थी ,संजोयी जाती निश्चित स्थानों पर ,
अब भ्रष्ट -लता /
नित्य निंदनीय ,प्रत्येक जगह है ,
केवल पथ्यर ,बंज़र ,स्वाभिमानी डयोढीयों को छोड़ /
क्योंकि वहाँ देवता संत ,सज्ज़न अब वास करते हैं ,
नहीं मिलती उर्वरा शक्ति ,निस्तेज हो सुख जाती है वहां /
विकास ,परिमार्जन ऊँचे मानदंड , तो पाती है ---
राजनेता ,नौकर-शाह, संज्ञा -सून्य व्यसायियों , अपराधियों के द्वार /
पतझड़ से दूर , व्याधिहीन , सुरक्षित ,
दबंग ,कितनी निडर है !
अपनी मुठी में दबा --दया, क्षमा ,सत्य ,सहयोग ,यहाँ तक कानून भी ,
दुस्साहस भरा प्रयास ,
कितना सफल ?
दवा ,खाद्यान ,दूध, चढ़ते भेंट मिलावट के ,
गिरते नए मकान ,पूल ,बेचते -अनुदान , दस्तावेज ,
यहाँ तक देश के ,प्रलेख भी !
कमीशन पर मिलती निधियां ,
बनते कुबेर /
समाज- सेवक ,लोकसेवक खाते कसम , इमान की ,भगवान की ,
सीमित आय /
असीमित कैसे हो गयी /
फार्म हॉउस ,होटल अट्टालिकाएं मिल ,कारखाने
धनपतियों में सुमार ,धन- पशु ,
कहाँ से लाये, अकूत धनराशि ? बेपनाह ऐश्वर्य ?
इन्द्र देवता के सामान !स्वर्ण- लता के पालक /
जहाँ आज भी ३५%आबादी दो जून रोटी की मुहताज !
दर्शनीया ,स्वर्ण -लता ,
बन गयी भ्रष्ट -बेल !
सतत फैलती ही जा रही है /
मिल रही उर्वर मिटटी ,और माली भी /
उदय वीर सिंह
5/12/2010
कीर्ति मिलती है /
लहलहाती हुई ,
स्वर्णलता ,
अब मैं देखता हूँ ,--
लान ,करीने , कंगूरे , स्वागत- द्वार ,मोढ़े पर नहीं पाई जाती /,
अनुवांशिक गुण ही अपना बदल लिया ,
विकसित कर लिया है ,नया जीन / ---
अब जीवन की प्रत्येक शाखाओं को अपनी आकर्षक मजबूत बाँहों में ,
समेटने को तत्पर ,
अपने प्रखर रूप ,स्वरुप , का करती निर्लज्ज प्रदर्शन ,
आहत करता है मन को /
कभी दर्शनीय ,शुभ थी ,संजोयी जाती निश्चित स्थानों पर ,
अब भ्रष्ट -लता /
नित्य निंदनीय ,प्रत्येक जगह है ,
केवल पथ्यर ,बंज़र ,स्वाभिमानी डयोढीयों को छोड़ /
क्योंकि वहाँ देवता संत ,सज्ज़न अब वास करते हैं ,
नहीं मिलती उर्वरा शक्ति ,निस्तेज हो सुख जाती है वहां /
विकास ,परिमार्जन ऊँचे मानदंड , तो पाती है ---
राजनेता ,नौकर-शाह, संज्ञा -सून्य व्यसायियों , अपराधियों के द्वार /
पतझड़ से दूर , व्याधिहीन , सुरक्षित ,
दबंग ,कितनी निडर है !
अपनी मुठी में दबा --दया, क्षमा ,सत्य ,सहयोग ,यहाँ तक कानून भी ,
दुस्साहस भरा प्रयास ,
कितना सफल ?
दवा ,खाद्यान ,दूध, चढ़ते भेंट मिलावट के ,
गिरते नए मकान ,पूल ,बेचते -अनुदान , दस्तावेज ,
यहाँ तक देश के ,प्रलेख भी !
कमीशन पर मिलती निधियां ,
बनते कुबेर /
समाज- सेवक ,लोकसेवक खाते कसम , इमान की ,भगवान की ,
सीमित आय /
असीमित कैसे हो गयी /
फार्म हॉउस ,होटल अट्टालिकाएं मिल ,कारखाने
धनपतियों में सुमार ,धन- पशु ,
कहाँ से लाये, अकूत धनराशि ? बेपनाह ऐश्वर्य ?
इन्द्र देवता के सामान !स्वर्ण- लता के पालक /
जहाँ आज भी ३५%आबादी दो जून रोटी की मुहताज !
दर्शनीया ,स्वर्ण -लता ,
बन गयी भ्रष्ट -बेल !
सतत फैलती ही जा रही है /
मिल रही उर्वर मिटटी ,और माली भी /
उदय वीर सिंह
5/12/2010
शनिवार, 4 दिसंबर 2010
*बांटो ना कोय*
हमने पाए हैं जीवन धोखे और गम ,
जिसने भी दिया तो" पराया" समझ कर /-------
ना सिकवा किया, ना शिकायत , किसी से ,
ले आंचल में बांधा, " बकाया" समझ कर -----
हर ठोकर को समझा है अपना मुकद्दर ,
हर सितम में है ढूंढा ,ख़ुशी की किरण /
नफ़रत की गली प्यार ही मैंने ढूंढा ,
हमने काँटों में चाहा बाहर -ए- चमन /
चलती रही है पथरीले पथों पर ,
जिंदगी भी मिली तो" किराया" समझ कर -----
भीगते हुए आंशुओं को भी देखा ,
तड़फते रोशनी को , मशाल-ए- शहर में /
दर्द, आँचल से छन कर, गिरा था तिमिर में ,
ढूंढ़ कर के जलाया गया चांदनी में /
ना आकार था ,ना कोई आक्रति ही ,
जीवन को जिया , धूप - छाया समझ कर /-----
उदय वीर सिंह
०३/१२/२०१०
जिसने भी दिया तो" पराया" समझ कर /-------
ना सिकवा किया, ना शिकायत , किसी से ,
ले आंचल में बांधा, " बकाया" समझ कर -----
हर ठोकर को समझा है अपना मुकद्दर ,
हर सितम में है ढूंढा ,ख़ुशी की किरण /
नफ़रत की गली प्यार ही मैंने ढूंढा ,
हमने काँटों में चाहा बाहर -ए- चमन /
चलती रही है पथरीले पथों पर ,
जिंदगी भी मिली तो" किराया" समझ कर -----
भीगते हुए आंशुओं को भी देखा ,
तड़फते रोशनी को , मशाल-ए- शहर में /
दर्द, आँचल से छन कर, गिरा था तिमिर में ,
ढूंढ़ कर के जलाया गया चांदनी में /
ना आकार था ,ना कोई आक्रति ही ,
जीवन को जिया , धूप - छाया समझ कर /-----
उदय वीर सिंह
०३/१२/२०१०
उपहास
मेरा जीवन उजड़ा उपवन ,
जिसे प्रीत नहीं मिलती -----
साज प्रतीक्षित गाने को ,
जिसे गीत नहीं मिलती ----
ख्वाब बिना आँखों में कोई
लक्ष्य नहीं विचार नहीं /
अरमान हूँ मैं उस मंजिल का
जिसका कोई संसार नहीं /
बिखरा हुआ वो गीत हूँ मैं ,
जिसे संगीत नहीं मिलती --------
दर्द का मंदिर दिल ही तो है ,
औरों को इसे देना क्यों ?
प्यार की मूरत मंदिर में ,
गैरों से फिर लेना क्यों ?
हारा हुआ मैं सिकंदर हूँ ,
जिसे जीत नहीं मिलती /----------
उदय वीर सिंह
३/१२/२०१०
शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010
** दक्षिणा **
सुख शांति के आंगन में , बस प्यार मांगती है ,
मात्री-भूमि अपने आंचल का अधिकार मांगती है /
प्यार पल्वित हो उपवन में ,
रस भरे ,मृदुल मकरंदों का /
सौरभ से भर जाये जगत ,
चिर मलय बहे आनंदों का /
मानवतावादी मधुपों का गुंजार मांगती है /-----
एक बनाया , एक ही समझा ,
एक सूत्र में पाला /
मातृत्व -निधि ,वैभव को देकर ,
सबको गले लगाया /
वैभवशाली ,प्रीतमयी ,संसार मांगती है -------
ज्योतिर्मय ,जगमग दीप जला ,
कण -कण से नेह लगायी /
मानव - धर्म का स्फुर्लिंग कर ,
निः ,सारों की होली जलाई /
आदर्शों के मूल्य सलिल ,रस-धार मांगती है /-------
अपना और पराया कैसा ?
एक जया के भ्राता /
दिग -भ्रमित क्यों होते बंधू ?
हो ! देश -प्रेम से नाता /
भरा प्रेम हृदय हर्षित,अंकवार मांगती है /------
उदय वीर सिंह
०३/१२/२०१०
मात्री-भूमि अपने आंचल का अधिकार मांगती है /
प्यार पल्वित हो उपवन में ,
रस भरे ,मृदुल मकरंदों का /
सौरभ से भर जाये जगत ,
चिर मलय बहे आनंदों का /
मानवतावादी मधुपों का गुंजार मांगती है /-----
एक बनाया , एक ही समझा ,
एक सूत्र में पाला /
मातृत्व -निधि ,वैभव को देकर ,
सबको गले लगाया /
वैभवशाली ,प्रीतमयी ,संसार मांगती है -------
ज्योतिर्मय ,जगमग दीप जला ,
कण -कण से नेह लगायी /
मानव - धर्म का स्फुर्लिंग कर ,
निः ,सारों की होली जलाई /
आदर्शों के मूल्य सलिल ,रस-धार मांगती है /-------
अपना और पराया कैसा ?
एक जया के भ्राता /
दिग -भ्रमित क्यों होते बंधू ?
हो ! देश -प्रेम से नाता /
भरा प्रेम हृदय हर्षित,अंकवार मांगती है /------
उदय वीर सिंह
०३/१२/२०१०
तेरा सदका
बहारों के घर की खुली खिड़कियाँ ,
झांकना हो तो झांको मनाही नहीं /-----
मेरे आंगन का दर्पण कसे फब्तियां ,
प्रीत हमने किसी से निभाई नहीं /------
झील सी सौम्य आँखों का हम क्या करें ,
कोई कश्ती कहीं ,हमने पाई नहीं /--------
खंडित शिलाओं से पूछो बयां,
टूट कर कैसे बनते हैं रहबर हमारे /
सहेज रखना घावों को, फितरत है उनकी ,
वो तो देते ,मुक़द्दस मंजिलो के नज़ारे /
रस्ते वादियों से, मिलाते रहे ,
मुड़ के देखे कोई याद आई नहीं /-----------
शीतल मलय ,तेरे घर की तरफ ,
तपन से बचा कर ,संवारा करें ,
नीले अम्बर तक खुशियों की सरहद तेरी ,
मन्नतें भी ,खड़ी हो निहारा करें /
दुआ करने वालों तेरे ,सजदे करूँ ,
वैर की राह , हमने बनाई नहीं /---------
चल सको दो कदम ,साथ आओ चलें ,
है उजाला उदय ,शाम आई नहीं /-------
उदय वीर सिंह
०३/१२/२०१०
झांकना हो तो झांको मनाही नहीं /-----
मेरे आंगन का दर्पण कसे फब्तियां ,
प्रीत हमने किसी से निभाई नहीं /------
झील सी सौम्य आँखों का हम क्या करें ,
कोई कश्ती कहीं ,हमने पाई नहीं /--------
खंडित शिलाओं से पूछो बयां,
टूट कर कैसे बनते हैं रहबर हमारे /
सहेज रखना घावों को, फितरत है उनकी ,
वो तो देते ,मुक़द्दस मंजिलो के नज़ारे /
रस्ते वादियों से, मिलाते रहे ,
मुड़ के देखे कोई याद आई नहीं /-----------
शीतल मलय ,तेरे घर की तरफ ,
तपन से बचा कर ,संवारा करें ,
नीले अम्बर तक खुशियों की सरहद तेरी ,
मन्नतें भी ,खड़ी हो निहारा करें /
दुआ करने वालों तेरे ,सजदे करूँ ,
वैर की राह , हमने बनाई नहीं /---------
चल सको दो कदम ,साथ आओ चलें ,
है उजाला उदय ,शाम आई नहीं /-------
उदय वीर सिंह
०३/१२/२०१०
गुरुवार, 2 दिसंबर 2010
दुर्बल का सफ़र
दुर्बल ,
अपाहिज ,लाचार ,फैलाये हाँथ ,
दोनों पैरों से हीन ,
मदद करो ! दया करो !भगवान के लिए !
आ रहा घिसटता , देता आवाज ,रेल के डिब्बों में /
टिकट साधारण ,
भीड़ का आलम ,सौचालय भी कम पड़ गये ,
मजबूर , मजदूर यात्रियों से ,जो चले तलाश में सुखी जीवन की परदेस में ,
दुर्बल चला गया ,आरक्षित डिबे में ,भीड़ से बचने के उपक्रम में ,
क्यों की बीमार था ,
बाथरूम के पास खड़ा ही तो था !
मैला -कुचैला ,लिए थैला
जिसमें ,एक फटी चादर ,व पैबंद लगी लुंगी थी ,
जा रहा था नाबालिग बेटे के श्राद्ध में ,
बेटा मजदूर था ,मारा गया घटिया निर्मित उपरगामी पुल के मलबे में /
आभाव में संस्कार में नहीं पहुंचा ,नहीं देख पाया मरे बेटे का मुंख
ना दे सका अग्नि जिगर के तुकडे की लाश को /
एक अदद पूंजी बकरी बेंची ,कुछ इंतजाम हुआ भाड़े का ,
लुगाई ना जा सकी संग ,
दूसरा ना था कुछ उसके पास बेचने को /
****
टिकट,टिकट ,करता आया टी. टी ,
डाली नज़र सहमी हुई कृशकाया पर
माँगा टिकट !
दिया टिकट , कांपते हांथों से ,
टेढ़ी नज़र,--ये साधारण टिकट ------
तू कैसे आया इस डिब्बे में ?
तेरी मजाल--तेरी माँ की-----तेरी -बहन की----
सौक नबाबों का ?------
निकाल पैसे ! बनवा टिकट ! दंड के साथ /-----
नहीं तो भेजूंगा जेल ! मरूँगा बीस गिनूंगा एक /
सर ! मेरी मज़बूरी यहाँ ले आई ,पांव रखने को नहीं मिली जगह ,
बीमार हूँ , दमा है मुझे / श्राद्ध में शामिल होने दो बेटे के / -----
यहीं काट लूँगा सफ़र ,गलियारे में ,कोने में ,
,,पैर पकड़ गिड़-गिडाया / तरस नहीं आया ,बाबु जी को /
साले ! ड्रामा करते हो ?
मैं जनता हूँ तुम लोगों की फितरत !
निकाल पंद्रह सौ ,वर्ना जायेगा जेल ,
सर मंजूर मुझे ,जो सजा दो ,मालिक हैं आप ,
ठीक है ,पांच सौ दो , सीट दे दूंगा /-------
बाबू जी ! भूखा हूँ कल से ,बस बीस रुपये बचे हैं ,टिकट के बाद ,
चाहें तो दे दूं ! जो किराया है दिल्ली की बस का /
झल्लाया साहब ,बदतमीज !स्लीपर मिलता बीस में ?
मैं मसखरा लगता हूँ ? पकड़ी गर्दन ,
चल बाहर ! इसी वक्त !-------,
जोड़े हाँथ ! बख्स दो बाबू जी ! अगले स्टेशन उतर जाऊंगा /
रहम करो ! पीछे दुखों की मारी , पगली सुखना भी है ,
अब ,कोई नहीं मेरे सिवा उसका /
पद , प्रतिष्ठा , अधिकार का जोश !
ऊपर से रिश्वत ना मिलने का रोष ,
ना देखी गति ना सोचा परिडाम ,
दे दिया धक्का ,चलती ट्रेन से /
दुर्बल गिर पड़ा !
होश आया तो , पाया अस्पताल में , पैर- विहीन ,
मजबूर लाचार /--
करुण- क्रंदन ,वेदना प्रवाहित ----
बाबू जी !---
हमको तो मिला-- -दर्द , उपेक्षा ,बेबसी लाचारी ,
गम से मरी , बीबी का विछोह ,
अपनी लाश !ढ़ोने को अपने कन्धों पर,
सदा के लिए /---
आपको क्या मिला ?----
उदय वीर सिंह
०१/१२/२०१०.
अपाहिज ,लाचार ,फैलाये हाँथ ,
दोनों पैरों से हीन ,
मदद करो ! दया करो !भगवान के लिए !
आ रहा घिसटता , देता आवाज ,रेल के डिब्बों में /
टिकट साधारण ,
भीड़ का आलम ,सौचालय भी कम पड़ गये ,
मजबूर , मजदूर यात्रियों से ,जो चले तलाश में सुखी जीवन की परदेस में ,
दुर्बल चला गया ,आरक्षित डिबे में ,भीड़ से बचने के उपक्रम में ,
क्यों की बीमार था ,
बाथरूम के पास खड़ा ही तो था !
मैला -कुचैला ,लिए थैला
जिसमें ,एक फटी चादर ,व पैबंद लगी लुंगी थी ,
जा रहा था नाबालिग बेटे के श्राद्ध में ,
बेटा मजदूर था ,मारा गया घटिया निर्मित उपरगामी पुल के मलबे में /
आभाव में संस्कार में नहीं पहुंचा ,नहीं देख पाया मरे बेटे का मुंख
ना दे सका अग्नि जिगर के तुकडे की लाश को /
एक अदद पूंजी बकरी बेंची ,कुछ इंतजाम हुआ भाड़े का ,
लुगाई ना जा सकी संग ,
दूसरा ना था कुछ उसके पास बेचने को /
****
टिकट,टिकट ,करता आया टी. टी ,
डाली नज़र सहमी हुई कृशकाया पर
माँगा टिकट !
दिया टिकट , कांपते हांथों से ,
टेढ़ी नज़र,--ये साधारण टिकट ------
तू कैसे आया इस डिब्बे में ?
तेरी मजाल--तेरी माँ की-----तेरी -बहन की----
सौक नबाबों का ?------
निकाल पैसे ! बनवा टिकट ! दंड के साथ /-----
नहीं तो भेजूंगा जेल ! मरूँगा बीस गिनूंगा एक /
सर ! मेरी मज़बूरी यहाँ ले आई ,पांव रखने को नहीं मिली जगह ,
बीमार हूँ , दमा है मुझे / श्राद्ध में शामिल होने दो बेटे के / -----
यहीं काट लूँगा सफ़र ,गलियारे में ,कोने में ,
,,पैर पकड़ गिड़-गिडाया / तरस नहीं आया ,बाबु जी को /
साले ! ड्रामा करते हो ?
मैं जनता हूँ तुम लोगों की फितरत !
निकाल पंद्रह सौ ,वर्ना जायेगा जेल ,
सर मंजूर मुझे ,जो सजा दो ,मालिक हैं आप ,
ठीक है ,पांच सौ दो , सीट दे दूंगा /-------
बाबू जी ! भूखा हूँ कल से ,बस बीस रुपये बचे हैं ,टिकट के बाद ,
चाहें तो दे दूं ! जो किराया है दिल्ली की बस का /
झल्लाया साहब ,बदतमीज !स्लीपर मिलता बीस में ?
मैं मसखरा लगता हूँ ? पकड़ी गर्दन ,
चल बाहर ! इसी वक्त !-------,
जोड़े हाँथ ! बख्स दो बाबू जी ! अगले स्टेशन उतर जाऊंगा /
रहम करो ! पीछे दुखों की मारी , पगली सुखना भी है ,
अब ,कोई नहीं मेरे सिवा उसका /
पद , प्रतिष्ठा , अधिकार का जोश !
ऊपर से रिश्वत ना मिलने का रोष ,
ना देखी गति ना सोचा परिडाम ,
दे दिया धक्का ,चलती ट्रेन से /
दुर्बल गिर पड़ा !
होश आया तो , पाया अस्पताल में , पैर- विहीन ,
मजबूर लाचार /--
करुण- क्रंदन ,वेदना प्रवाहित ----
बाबू जी !---
हमको तो मिला-- -दर्द , उपेक्षा ,बेबसी लाचारी ,
गम से मरी , बीबी का विछोह ,
अपनी लाश !ढ़ोने को अपने कन्धों पर,
सदा के लिए /---
आपको क्या मिला ?----
उदय वीर सिंह
०१/१२/२०१०.
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
=== हम -वतन ===
रोशनी के दिए तू जलाता रहे /
डूब जाये जो सूरज ,अम्बर में कभी ,
जुगुनुओं की तरह , जग-मगाता रहे----- -- -----
हर तरफ है अँधेरा किधर जाओगे ,
मिला है विरासत में हम वारिसों को /
उगाना पड़ेगा एक सूरज मुक़द्दस ,
रोशनी की जरुरत है हम वारिसों को /
राहे-रहबर भले अपना साया बने ,
शहर -ए गम में भी तू मुस्कराता रहे---- -------
जेल ही है जगह जिनकी ,वो संसद में दिखे ,
बेशर्म भाषण ,में अमृत झरे है /
वे बदलते हैं परिभाषा अपनी तरह ,
केवल महफूज रहने का उपक्रम करे है /
गन्दा इतिहास करने की आज्ञा किसे है ?
करके पहचान उनकी मिटता रहे -------
ना धन का, ना बल का, अभिमान हो ,
हम भारत सदा , हम इन्सान हैं /
मोह -ममता तजें ,देश - हित हम जिंयें
वतन के हिफाज़त की पहचान हैं /
शौक-ए-सहादत ले चल पड़ा ,
रोड़ा आये कोई तो हटाता रहे ,---------
भय -भूख भ्रस्टाचार ना भारत के गहने
खुशहाल ,सुंदर, समरस हो भारत /
गरीबी अशिक्षा अज्ञानता से हो बंचित ,
" हम भारतवासी" का नारा हो भारत /
दूरियां है मिटानी , दिल जोड़ना है ,
प्रेम बनकर दिलों में तू गता रहे ----------
मात्री-भूमि से नाता कैसा गद्दार का ,
स्वार्थ , सत्ता ही प्यारी थी हर दौर में /
आक्रान्ताओं , लुटेरों के वाहक रहे ,
ध्वज -वाहक बने कैसे इस दौर में /
जल चुकी है सदियों तक मेरी -मातृभूमि ,
अब ना जले याद आता रहे ------
जख्म जिसने दिए ,वे दुलारे ना होंगे,
दे रहे जख्म अब भी, मिटाना ही होगा /
नीति, न्याय, शासन, पारदर्शी, बनें ,
द्रोही , बेईमानों को जाना ही होगा /
सुन भारत ,भरत, की आवाज क्या है ?
ज्ञान , वैभव , शक्ति नित हमारा रहे ------
उदय मेरा भारत ,देवों की धरती ,
क़यामत तक बंदन हमारा रहे --- ------
उदय वीर सिंह
०१/१२/२०१०.
.
.
डूब जाये जो सूरज ,अम्बर में कभी ,
जुगुनुओं की तरह , जग-मगाता रहे----- -- -----
हर तरफ है अँधेरा किधर जाओगे ,
मिला है विरासत में हम वारिसों को /
उगाना पड़ेगा एक सूरज मुक़द्दस ,
रोशनी की जरुरत है हम वारिसों को /
राहे-रहबर भले अपना साया बने ,
शहर -ए गम में भी तू मुस्कराता रहे---- -------
जेल ही है जगह जिनकी ,वो संसद में दिखे ,
बेशर्म भाषण ,में अमृत झरे है /
वे बदलते हैं परिभाषा अपनी तरह ,
केवल महफूज रहने का उपक्रम करे है /
गन्दा इतिहास करने की आज्ञा किसे है ?
करके पहचान उनकी मिटता रहे -------
ना धन का, ना बल का, अभिमान हो ,
हम भारत सदा , हम इन्सान हैं /
मोह -ममता तजें ,देश - हित हम जिंयें
वतन के हिफाज़त की पहचान हैं /
शौक-ए-सहादत ले चल पड़ा ,
रोड़ा आये कोई तो हटाता रहे ,---------
भय -भूख भ्रस्टाचार ना भारत के गहने
खुशहाल ,सुंदर, समरस हो भारत /
गरीबी अशिक्षा अज्ञानता से हो बंचित ,
" हम भारतवासी" का नारा हो भारत /
दूरियां है मिटानी , दिल जोड़ना है ,
प्रेम बनकर दिलों में तू गता रहे ----------
मात्री-भूमि से नाता कैसा गद्दार का ,
स्वार्थ , सत्ता ही प्यारी थी हर दौर में /
आक्रान्ताओं , लुटेरों के वाहक रहे ,
ध्वज -वाहक बने कैसे इस दौर में /
जल चुकी है सदियों तक मेरी -मातृभूमि ,
अब ना जले याद आता रहे ------
जख्म जिसने दिए ,वे दुलारे ना होंगे,
दे रहे जख्म अब भी, मिटाना ही होगा /
नीति, न्याय, शासन, पारदर्शी, बनें ,
द्रोही , बेईमानों को जाना ही होगा /
सुन भारत ,भरत, की आवाज क्या है ?
ज्ञान , वैभव , शक्ति नित हमारा रहे ------
उदय मेरा भारत ,देवों की धरती ,
क़यामत तक बंदन हमारा रहे --- ------
उदय वीर सिंह
०१/१२/२०१०.
.
.
** महक **
महक !
प्रतीक्षित , तेरा आगमन ,स्वागतम ,
की थी तलाश सबमें शरीर , सूरा ,इत्र, पंक, कुसुम -वादियों में ,
अपनी मिटटी , अपनी स्मृतियों में /
पाई तो गयी ,बांध ना सका ,हमेशा के लिए ,
चलायमान जो ठहरी /
तेरी आहट समस्त सांसों को शंशय- मुक्त करती है -----
उदघोष करता है वातावरण-- तेरा सुखद अस्तित्व , तुम हो /
बह चली, किस गली ? ,किस पथ ? किसे मालूम ,
बस तुम आ गयी ,समां गयी , मन में , तन में , बहती पवन ,
आँगन , उपवन में /
उल्लसित ह्रदय , विरक्त हो त्रास से , बोल उठता है ,
तू, यथार्थ है संवेदना का , वांछित है नित्य , प्रिय भी /
स्वागतम तेरा /
प्रकृति के सुंदर रूप ,
बे-जुबान ,सींचते प्रेम की भाषा ,
लहराते सौन्दर्य रंग -बिरंगे, अप्रतिम दृश्यों को सजाते ,प्रसूनों की -
अद्वितीय प्रतिनिधि !
समर्थक तेरे मनुष्य ही नहीं , इतर - मनुष्य भी हैं ,
समायी चहूं ओर कितनी विचित्र ,
आती ना हाँथ , होकर कितनी पास , पकड़ से दूर /
अंतर्मन की गहराईयों में तेरी पहुँच ,
हस्ताक्षर हो --
वफ़ा का -बेवफा का ,
पढ़े गये निवेदन - प्रतिवेदन ,तेरे सानिध्य में ,---
संकेतक हो !साक्ष्य हो / ---
संकेतक हो !साक्ष्य हो / ---
स्पस्ट उकेर देती हो स्मृतियाँ ,स्मृति पटल पर /
कैसी थी रुत ? मिलन की ,बिछुड़न की ,प्यार की ----
कैसी थी शाम ? रौनक - ए -महफ़िल ?
अहसास को , पास रखने की हिमाकत !
सजाते गुलशन ,गुलदस्ते ,
अर्क ,बोतल -बंद किये जाते /
जब तक हो !
आनंद है , उन्माद है , अनुभूति है /
मुरझा जाते है पुष्प ,सड़ांध आती है /
मरहूम तुमसे ,खाली शीशियाँ ,
फेंक दिए जाते हैं कूड़ेदान में /
तेरे जाने के बाद /
महक !
उदय वीर सिंह
01/12/2010
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