हमसफ़र ,
डूबती रात में
उतराकर,
चाँद बन गया /
क्यों चिढ़ता है मुझे ,
अमावास की रात बाकी है /---------
मुझे रहने दे ,
आगोश में
यादों के /
वादियों ,सागरों ,पहाड़ों में ,
ढूढता हूँ ,तेरी परछाईं /
नहीं मिलती /
आरत मन ,उद्विग्न होता है ,टूटता है ,/
जानकर ---
तेरा साया भी तेरे साथ नहीं /
छल था मेरा ,हमराह बनना !
अलसुबह ,नहीं होगा वजूद तेरा
अभागी ओश की तरह /
प्रखरित होगा दिनकर ,
व्योम में /------------
उदय वीर सिंह
३०/१२/२०१०
3 टिप्पणियां:
मन के भावों को बहुत संजीदगी से अभिव्यक्त किया है आपने ...शुक्रिया
तेरा साया भी तेरे साथ नहीं /
छल था मेरा ,हमराह बनना !
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वेदना का उत्कृष्ट नमूना हैं यह पंक्तियाँ ...
नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें ...स्वीकार करें
यही ज़िन्दगी की सच्चाई है।
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